आधुनिक शस्य विज्ञान | Aadhunik Shasya Vigyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
302
श्रेणी :
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डॉ प्रवीण राठौर - Dr. Pravin Rathour
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रामअवतार पोरवाल - Ramavtar Porwal
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)11
चाप् की गति झीर दिशा का भ्रमाव -
वायु की गठि भौर दिशा का फसलों तथा कृषि संका्ों पर प्रमाव पड़ता है
1. जनवरी-फरवरी में तेज वायु के चलने पर गेहूं, जी श्रादि फसलें गिर
जाती हैं तथा नमी शीघ्र बाप्प बनकर उड़ जाती है जिससे दाने में दूप न पड़कर
मिकुड़ जाते हैं भोर उपज कसम प्राप्त होती है क्योंकि सिंचाई करने से फसलें गिर
जाती हैं !
' 2. माच, ग्रभरल, मर महीनों में गर्म पछुधा हृवामों का चलना उपयोगी
रहता है जो फसलों को पकाती हैं । खलियान में पड़ी लॉक की प्रोसाईके लिए गमे
पहुमा हवायें भावध्यक ह तथा ये हृवायें अनाज की नमी को कम कर देती हैं जिससे
भनाज मण्डार में सुरक्षित रहता है !
3. मार्च-भर््ल्त में पूर्वी हवायें हानिकारक होती हैं क्योकि ये वर्षा लाती
है बोर हनायों की नम होने से फल देरी से परती हैं. मर इस हवा में प्रोस़ाया
भ्रनाज मण्डारमें रखने पर वर्पा ऋतु में खराब हो जाता है ।
4. मई-जून में तेज गर्म झांधियाँ झाने से खलियान में रखी लॉक उड़ जाती
है नया सेनों की ऊपरी उपयाऊ मिटटी दवा में उड़ने से प्रनुबर हो जाती है । फलों
के पेडों से फल बडी मात्रा में गिर जाते हैं तथा पेड टूट जाति है जिससे वाग-बगीचों
को घ्रघिक हानि होती है ।
5. जुलाई-मेगस्त-सितम्बर में मानशुन हवाओं से वर्षा होती हैं जिसका
भारतीय झृषि में विशेष योगदान है ।
है. श्रवटूबर-नवम्बर में हवाशीं का वेग रावसे कम रहता हूँ ।
7: दिसम्बर-जनवरी में हवाओं के चलने से पाले की झाश का कम' रहती है ।
मौसम की दरों का फरालों पर भ्रमाव
मौसम की विभिन्न दशाएँ विभिन्न फसलों को हानि पहुँचाती है--
1. दिसम्बर-ननवरी माह में फसलों पर पाले का भय रहता हैं जिसका
अरहर, चना यादि पसलों पर अधिक परमाव होता है 1
2, जनवरी-फरवरी माह मे नम मौसम होने तथा बादल छाये रहने पे गहै,
जी, श्रलसी श्रादि फसलो पर गिरवी (१५5) रोग का क्रमश हो जति है जिससे
उपज मे मारी कमी श्रा जाती है ।
3. सड़ी फसल पर श्रोले पड़ने से फसल गिरकर गल जाती है 1 कटाई के
समय श्रोसो मे दाने भूमि में गिरकर नप्ट हो जाने हैं ।
4. तेज हवाशां के चलने सि फसलें झाड़ी होकर गिर जाती हैं. जिससे उपज
में कमी भा जाती हू ।
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