नीला पंजा | Nila Panja

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Nila Panja by प्रमोद बिहारी - Pramod Bihari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ नीला पञ्चा शजा दी कहा करते थे अत: बाद में वह जागीर भर में राजाके नाम से ही पुकारा जाता था । चन्द्रकला उसकी ख्री का नाम था | जैसा कि उसका नाम था बसी दी वह स्वरूपबती भी. थी और उसके चहरे से यह प्रतीत होता था कि मानो बह सदा हसती ही रहती है श्र विधाद तो इसने जाना तक नहीं । चन्द्रकला को राजा श्रधिकतर चन्द्र! दी कह कर सम्बोधित करता था। चन्द्र ने वी» एस० सी० तक भारतें में शिक्षा पाई थी और निरंतर श्पने पति के साध श्रध्यन किया. करती थी ।चन्द्रा राजा के साथ विदेश भ्रमण को भी गई थी अतः वदद अध्यन व प्रयोग के समय अपने पति का साथ पूर्ण रूप से देती थीं। नतोचन्द्र दी को घर-बोर देखने का झचकास मिलता था श्र न राजा टी को । दोनों पति-पररिन श्रपने काम में सलंग्न रहते थे । दरपालसिंद इसमें ही प्रसन्न थे। बह कमी २ सरादद कर यह कह दिया करते थे कि “राजा श्रौर उसकी ख्री ही ने अपनी घिद्या का परा फायदां उठाया है और अब भी दोनों श्रपने ही काम मे संलग्न रहते भगवान उनको चिरायु रखे । तीसरा परिच्छेद । दुर्गम दुगं | काठमंडू नेपाल की राजधानी है । यहाँ से एक सड़क भारतीय अप्रेजी राज्य सीमा की श्रोर शती है जो पद, ( & )




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