युगादिजिनदेशना | Yugadijindeshna
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
308
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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-श्रथिरे क्या देँ सङेगा १ आयुष्य कैष्यन्त सेमयमृलयु
ते क्या रेड सकेगा १ देह को मोपण कने वासी जरा-
राक्षसी ८ शृद्धादस्वा ) का वह निंग्रह (दमन ) करेगा ?
बारम्वार दुःख देने चाले न्यायिंरंप शिकारियो चप वट
नाश कर सकेगा ? या उत्तरोत्तर वढती हुई दप्णा का
चया बह चूण कर सकेगा १ इस प्रकार -कुद भी सेवा
का फल देन में वह झममर्य है तो मनुप्यपन सबको घरा
घर हैं इसलिये वर्यों फिंसी की कोई सेया करें $ जिसने
जिसको राय्य दिया हैं वद उसको संवने. योग्य है एसा
परसिद्ध व्यप्दार ई, चन्ति द्म को पिता ने राप्य दिह
तो इम भरतकी सेवा कयो ऊर १ ट खण्ड भरतत्तेन-के
समस्त राजाओं की विजय से उसका मन उन्मत्त हो: गया
मालूम होता हैं, जिससे झ्पने को भी वर सेवक बनाना
चाइता है । बंद घेढा भाई इतना भो नहां जानता कि
हम सब भी एक पिला के ही युव डं। फिर भी
उसको इतनीं खेर नहा कि से विक्त मे गोह नदीं दोती
नतकी डे फण बले सपमी हेते है । हते पर
मी मैं उनका स्वामी ओर ये मेरे सेबर' इस विचार से
चूहे यदि पीछे ने 'हटेंगा तो इम सर रण 'सद्ीम में
'उकद्दे दोरर लीला मान में दी उसी जीत करके छ'ख़ण्ड
के. विजय से माप्त किये हुए राज्य को' ग्रहण करेंगे ! रिंदु,
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