अनुभव पंचविन्शति | Anubhav Panchvishanti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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93. माहिउसकों भाव धर्म कहते हैं। बिना द्रव्य धर्मके नो मावधर्मकी आराधना करता है, बह पिनारगह भार गुडके ल्टड वाधनेवाठ जानना } वासते द्व्य धर्म और भाव धर्मक अटु्मेसे आराधन करना वे दितका।रझ है । ण्यी करणी एरना ददमी द्र्य धरम है । पुण्यसे उत्तम कुल अमतार मिलता है, और देवशर धर्मी नोगवाई मिल सक्ती है । दास्ते सापेक्ष चुद्धिसे पुण्यकी फरणीभी हिंहफारक है । ऐसा मानना 'चाहिये । जग पटे पुण्यफा उदय होता है, तप मतुष्य जन्म पा सकते हैं ! मत्य जन्म पने पुण्य कारण जानना । परन्तु भारक्न कहना पटेंगा कि, पाप आतप समान है, और पुण्य जया समान है। मुरय अभिलापा तो मोक्ष पानेकी रखना चादिये, परन्तु पुण्यफी चाहना न रखना ! लैसे किसान चाजरी वोता है, तप बाजरी जानेकी आशा करता है, परम्तू घासतों बाजरी परते स्वाभाविक उत्पन्न होता हे । पाजरीम किच हेनेके प्रथम साठ तैयार होता है, भार उसपर विदा आता ह, ओर वे पके तय वाजय निकलती है। यदिवानरीफास्गिनदेतो शिट्टाभी न दो और पाजरीमी न निकमे | जैसे पाजरीका सठा थि म्त्ये कारण है, बेसे ्व्यधमे भयम मस्ये कारण दै | रवय धके सिवाय माय पी म्नि रीं ह्ये सक्ती । वह उक्त दतत समनना) द्रव्य धमे ओर भायर्मरा स्वरूप गुरुमुखर सुन कर उसकी श्रा परके पमसाधन करना उसको हित है। `




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