अनुभव पंचविन्शति | Anubhav Panchvishanti
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)93.
माहिउसकों भाव धर्म कहते हैं। बिना द्रव्य धर्मके नो मावधर्मकी
आराधना करता है, बह पिनारगह भार गुडके ल्टड वाधनेवाठ
जानना } वासते द्व्य धर्म और भाव धर्मक अटु्मेसे
आराधन करना वे दितका।रझ है । ण्यी करणी एरना ददमी
द्र्य धरम है । पुण्यसे उत्तम कुल अमतार मिलता है, और
देवशर धर्मी नोगवाई मिल सक्ती है । दास्ते सापेक्ष चुद्धिसे
पुण्यकी फरणीभी हिंहफारक है । ऐसा मानना 'चाहिये । जग
पटे पुण्यफा उदय होता है, तप मतुष्य जन्म पा सकते हैं !
मत्य जन्म पने पुण्य कारण जानना । परन्तु भारक्न कहना
पटेंगा कि, पाप आतप समान है, और पुण्य जया समान है।
मुरय अभिलापा तो मोक्ष पानेकी रखना चादिये, परन्तु
पुण्यफी चाहना न रखना !
लैसे किसान चाजरी वोता है, तप बाजरी जानेकी आशा
करता है, परम्तू घासतों बाजरी परते स्वाभाविक उत्पन्न होता
हे । पाजरीम किच हेनेके प्रथम साठ तैयार होता है, भार
उसपर विदा आता ह, ओर वे पके तय वाजय निकलती है।
यदिवानरीफास्गिनदेतो शिट्टाभी न दो और पाजरीमी
न निकमे | जैसे पाजरीका सठा थि म्त्ये कारण है, बेसे
्व्यधमे भयम मस्ये कारण दै | रवय धके सिवाय माय
पी म्नि रीं ह्ये सक्ती । वह उक्त दतत समनना) द्रव्य
धमे ओर भायर्मरा स्वरूप गुरुमुखर सुन कर उसकी श्रा
परके पमसाधन करना उसको हित है। `
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