अनुभव पंचविन्शति | Anubhav Panchvishanti

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Anubhav Panchvishanti by बुध्दिसागर जी - Budhdisagar ji

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बुध्दिसागर जी - Budhdisagar ji

Add Infomation AboutBudhdisagar ji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
93. माहिउसकों भाव धर्म कहते हैं। बिना द्रव्य धर्मके नो मावधर्मकी आराधना करता है, बह पिनारगह भार गुडके ल्टड वाधनेवाठ जानना } वासते द्व्य धर्म और भाव धर्मक अटु्मेसे आराधन करना वे दितका।रझ है । ण्यी करणी एरना ददमी द्र्य धरम है । पुण्यसे उत्तम कुल अमतार मिलता है, और देवशर धर्मी नोगवाई मिल सक्ती है । दास्ते सापेक्ष चुद्धिसे पुण्यकी फरणीभी हिंहफारक है । ऐसा मानना 'चाहिये । जग पटे पुण्यफा उदय होता है, तप मतुष्य जन्म पा सकते हैं ! मत्य जन्म पने पुण्य कारण जानना । परन्तु भारक्न कहना पटेंगा कि, पाप आतप समान है, और पुण्य जया समान है। मुरय अभिलापा तो मोक्ष पानेकी रखना चादिये, परन्तु पुण्यफी चाहना न रखना ! लैसे किसान चाजरी वोता है, तप बाजरी जानेकी आशा करता है, परम्तू घासतों बाजरी परते स्वाभाविक उत्पन्न होता हे । पाजरीम किच हेनेके प्रथम साठ तैयार होता है, भार उसपर विदा आता ह, ओर वे पके तय वाजय निकलती है। यदिवानरीफास्गिनदेतो शिट्टाभी न दो और पाजरीमी न निकमे | जैसे पाजरीका सठा थि म्त्ये कारण है, बेसे ्व्यधमे भयम मस्ये कारण दै | रवय धके सिवाय माय पी म्नि रीं ह्ये सक्ती । वह उक्त दतत समनना) द्रव्य धमे ओर भायर्मरा स्वरूप गुरुमुखर सुन कर उसकी श्रा परके पमसाधन करना उसको हित है। `




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now