मोक्षमाला | Mokshmala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9५ ॐ सत्त श्री सद्युरुमक्ति रहस्य दोइरा« दे मभु) हे भ्रमु! थु कहु, दीनानाथ दयान हु तो दौोप अनतनु, भाजन दु करुणाठ शद्ध भावे सुजमां नथी, नथी सर्वं तुज रूप, मथी खघुता फे दीनता, श कहु प्रम स्वरूप ! नथी आज्ञा मुरुदेवनी, अचल करी उरमाहि; आपतणों विश्वास ब्रढः) ने परमादर नाहि जोग नथी सवसगनो, नयी सवे मेवा जोग; केवल अर्पेणता नथी, नयी आश्रय अनुयोग श पामर श फ्री शु एो नथी विक) सरण शरण धीरज नथी, मरण प्रुधीनी ठक अिय तुन मदात्मनो, नथी प्रफुटित भाव, अश न पएरे स्नेहनो, न मे परम प्रभाव अयद स्प आकक्ति नदि, नटि पिरदनो ताप; कथा अलम तुज मरेमनी, नदि तेनो परिवाप भक्तिमाग मवेश नदि, नहि भनन्‌ इद भान, समन नहिं निजधर्मनी, नदि शुमदेगे स्थान काठ दौप केविथो थयो, नहि मयौदा घम, तोये नदि व्याङृय्ना १ जुओ थमु मुज क सेवाने प्रतिकृष जे, ते उन नथी सग दे्द्रिय माने नुहिं....करे याद्य पर राग,




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