राजहंस हिंदी निबंध | Rajhans Hindi Nibhand
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
648
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आरक्षण
एव
उच्चतम न्यायालय का निणेय
बाग का कुशल माली, वाग के सभौ तर-लता गमो, पुष्पों मौर फलौ वलि
छोटे-वढे पादपी, को समान प्यार देता है, सभी को वर्षा और आतप से, माँघी और
तूफान से, कौडे और मवोडो सें, रोग और दूर हाथो से बचाता है, उपका पालन मोर
पोषण करता है । अपने परिश्रम के फलस्वरूप चमन को छिलता ओर हंता हमा देख
कर उनके मातम सन्तोप की सौमा नही रहती । वह यह कभी सौच भौ नही सक्ता कि
कुछ कलियां विल-चिलाकर हसने लगे बौर ॒ 4*“““ “~+ न्क
कुछ बवाल में ही घूल घूसरित हो कर । ¡ का श }
अगर बहार आती है तो सव पर आं | 1 क
सगर बु खिले गौर वुछ (4 गये और 1 3 अल ध का 1 1
कुछ ने अपने मूक स्वरों में , करण क्रदन व ॥
किया तो यह जान के माली की अकुशलता, { ०
१६ दिता मौर विवेकहीनता ही कही त क ।
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मा समन्तात् रक्षित इतिनारक्षित ' +
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षम विग्रहसे आरदणका अय है चारो ओर से रक्षा प्रदान करना । 'आरक्षण' शब्द
अप्रेजी के शब्द ०४८४४10ा वा दिदी रुपातर है । इस शब्द वा प्रयोग देश में
सर्वप्रथम लाई मिटो ने १९०६ ई० के भारत णासन अधिनियम यै अन्तर्गत किया था,
जिसके अनुसार भारत मे कुछ वर्गों को निर्वाचन मेँ पृथक् प्रतिनिधित्व देने की घातक्ही
गई थी । इसके वाद 'लारक्षण शब्द का प्रचार और प्रसार बढता ही गया । स्वाघीनता
के बाद हमारे संविधान निर्माताओं ने महात्मा गाँधी व अन्य समाज सुघारकों मै प्रयत्नो
सै प्रभावित होकर स्वतत्र भारत के संविधान में देश की अनूभूचितं जातियों भौर
अमुसूचित्त जनजातियों के लिए अनेक प्रावधानों का समावेश किया !
भारत वे सविधान में अमुसुचित जातियों तथा जनजानियों को देश की जन-
संडया का एवं ऐसा दिशेष यर्ग माना गया है, जिसको राष्ट्रीय स्तर तब लाने वे' लिए
यिवेबपुणं सरक्षण, सहायता तया सुनिरिचित बार्य योजना की आवश्यकता है । इस सबष्य
वी पूर्ति बे लिए संविधान मे स ३४९१ तथा ३४२ मे प्रावधान तिपिवदध विया
गया है । इसने अनुसार इन जातियों वो. राजनीति, अपंव्यवस्पा, शिक्षा तथा सस्कृति
मे झेत्र में अनेग सुविधायें दी गईं ।
संविधान मे अनुच्छेद १४ (8) में यह उपलब्ध विया गया है कि देश मे किसी भी
मग्रिक् के चषि घर्म, लाति, तिम भौर जम स्थान मे आधार पर भेदभाव नहीं दिया
जायेगा । इसी उपवघध मो ध्यान में रयवर उच्चतम “यायालय ने समिसनाढू (मद्ास)
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