स्वर्गप्राप्ति | Svargapraapti
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
57
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गिरिधारीलाल शास्त्री - Giridharilal Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ध १४ )
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कि इेश्वर देख रहा है, फिर सें केमे तोहता । महात्मा इस
दूभरे से बड़े प्रसव हुवे और इस को 'पना शिष्य ब
लाया । इसी प्रकार जो जमष्यदेश्वरको सष जगह देखता
2 वह सदा पापों मे कथा रहता है । इमीषा उपदेश
सवं भमष्योंषफो यलवद के षालीसवं अध्याय के प्रथम
सन्त्र से किया हि किः-
इ शावास्यमिदंथ्सव् यत्किञ्च जगत्यां ज-
गत् । तेनं रक्तन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य
स्विद्धनमर ॥ यजः अ० ४० म १९॥
यह जो कर हम ससार में चर श्र अचर देख रहे
हैं यह सब ( इंशावास्पम् ) परमात्मा से भरा हुआ है
छधात् देश्वर सब में व्यापक है । इस लिये इश्वर को प्र-
त्यक्ष ( हाजिर नाजिर ) समको और किसी का हक घन
खररह मत दप्नो । अतः मब पापों से बचने के लिये
सन्ध्योपामन करना परम धमं है और यही इस शरीर
रूपी कल्प बल्न की जड़ जमानी है ॥।
न दस वृक्ष में पानी दूना क्या है उस को में बतलाता
हू-इसी सन्ध्यापासन में प्राणायाम की क्रिया बताई
गई है ससख का करना पानी देना है । इस शरीर में कड़े
झरब कई करोड़ नस नाड़ी हैं जिन को वैद्य शाखे
ख्रताया दे । डाक्टरों ने भी नस शरीर नाडियों की संख्या
थी हे परन्त इन को ठीक पता नष्ीं खगतला । क्योंकि ये
अर्दा का तशवा जिन्दों पर अमल में लाते हैं । डाक्टर
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