मेरा अंतिम आश्रय श्रीमदभगवदगीता | Mera Antim Ashary Shrimadbhagavad Geeta

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Mera Antim Ashary Shrimadbhagavad Geeta by भाई परमानंद - Bhai Paramanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला परिच्छेद जर्वदूजीता और उसका रचयिता भणवद्‌्णीता की ओर मेरा ध्यान अपना विद्यार्थी जीवन समाप्त करने के बाद मुझे यह खयाल हुआ कि वह कौन सी पुस्तक है, जिसे मैं अपने स्वाध्याय के लिए हर समय अपने साथ रख सकता हूँ। कार्लाइल की लिखी किताब ' सारटर रिसार्टस' ने मेरे दिल पर इतना गहरा असर डाला कि मैंने उसे अपना साथी बना लिया । कुछ समय गुजर गया। अब मुझे यह बात पढ़ने का मौका मिला कि अमेरिका का एकमात्र प्रसिद्ध दार्शनिक 'एसर्सन एक बार कार्लाइल से मिलने गया | विदा के समय कर्लाइल ने एमर्सन को भगवद्गीता कौ एक प्रति उपहारस्वरूप भट कौ । इस घटना ने मेरे अंदर परिवर्तन उत्पन्न किया । मैंने 'सारटर रिसार्टस' को अलग रख दिया और उसकी जगह * भगवद्गीता! को अपने साथ कर लिया। भगवद्गीता की सर्वप्रियता हिंदू जाति का बच्वा-बच्चा भगवद्गीता के नाम से परिचित है। भारत में इस पुस्तक के जितने संस्करण छपे हैं उतने शायद किसी और के नहीं छपे होंगे। यहो जितना अध्ययन इसका किया जाता है उतना किसी ओर का शायद ही किया जाता हो ¦ आर्य जाति के पुराने विद्वानों में कोई विरला ही ऐसा होगा, जिसने भगवद्‌गीता पर अपनी टीका न लिखी हो । देश की विभिन्‍न भाषाओं में भगवद्गीता पर्‌ कई टीकाएँ लिखी गई है । विदेशी भाषाओं में शायद ही कोई ऐसी हो, जिसमें भगवद्गीता का अनुवाद विद्यमान न ही) प मेद मतिम आश्रय : श्रीमद्भगवद्गीता र १७




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