दिल की गहराई से भाग २ | Dil Ki Gaharaye Se Part 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लें ज्ञावगी, जिस तरह वदद किसी हत्यारे, उचक्के, गुण्टे को खुले आम ले जाती हू तो श्राञ चद्दी रमेश दफा ३०२ का मुजरिम बना ्रदालत के कठघरे में खड़ा है । बड़े-बड़े बेरिस्टर उसकी पेरवी में आयें हैं । हज्ञारों हजार उसके बचाने में पानी की तरइ बद्दाये जा रहे हैं । रईस का बेटा है श्रौर उसके जीवन-मरण का अश्स है | रइंस भिरधायै बाबू की इज्जत का पहन हैं । क्या उनकी नाक कट जायगी ? लेकिन इतना होने पर भी उनकी नाक कट ही गई कोई उसे बचा न सका । दफा ३०२ कारगर हुआ और न्यायाधीश ने उसे कोसी की सजा सुना ही दी । उसके बाद अपील हुई । इस कोर्ट से उस को्ट--सुप्रीम कोर्ट तक रइस गिरधारीलाल दौड़ कर भी दफा ३०२ को तोड़ नहीं सके आर एक दिन याने ठीक ता« १३ जनबरी को रमेश की फाँसी का दिन मुकरैर कर ही दिया गया | १३ जनवरी १६५४ ! जेल क भीतर रमेश अपनी अन्तिम घड़ियाँ गिनला हुआ मौत की इन्तजारी कर रहा था । अत्र सिफ पाँच मिनट बाकी थे । तब रमेश रमेश न रहेगा । बह फिर इस दुनिया में अपनी रंगीसी दिखलाने को भी नहीं मिलेगा । बाहर उसके पिता मर्ति बने तड़प रहे थे । आर उसके बाद ५. मिनट गुजरे । एक-दो-तीन ! रमेश का धड़ से अलग दो गया श्रौर ठीक उसी क्षण उसी जननी- उसकी माँ भी कुएँ में तड़प कर अपनी जान दे बेटी । दोनों की अष्मएं एक खथ उड़ गई ! रमेश को जाना था तो जाय । उसकी जसनी--माँ ने क्या यही अपराध किया था कि रमेश को अपनी कोख से जन्म दिया थू ओर जन्म देने का फल उसे इस तरह भोगनां पड़ा कि अपने चार




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