कुशाभिषेकम | Kushabhishekam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
74
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)20
लता है यह विश्व कर्म से आशा साहस श्रम से
नता हे प्रासाद भुवन बस मात्र स्वेद के क्रम से,
गाह्य प्रकृति श्रम-साध्य वेदना श्रम पर अवलम्बित है
भवशि पुरुष अन्तर्नियूढ़ योगानुकूल बच्दित है -४९-
इसीलिए जग का जीवन का ध्येय समग्र बनाते
अन्दर से हों तृप्त मुक्त हम ऐसी राह बनाते,
इसे पूर्ण करने को जग में धर्म अर्थ अपनाते
पुरुप प्रकृति परलोक लोक को सुगम बनाते जाते -५०-
सृजित किया आश्रम था हमने नहीं गत तजने को
निज कल्पना प्रसूत ईश को अरे! नहीं भजने को,
यह प्रयोग शाला समान नर-पथ के सदा प्रगति का
नहीं विखंडित नरं समाज से पथ नहिं कभी अगति का -५१-
हमने देकर शास्त्र नीति था नर-समाज को बोधा
सत्ता ओ सम्पत्ति का वितरण सब समाज में साधा,
आज समस्या जो महान मानव समाज पर छाई
करे निवारण उसका भी यह सच स्वधर्म है भाई -५२
आसमान में तम तारक थे
अद्भुत गति से नाच रहे,
शिष्य मनस-अन्तर में जेसे
करते कर्म कुलांच रहे -५३-
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