भारतीय समाजवाद की रूपरेखा | Bhaaratiiy Samajavad Kii Ruparekhaa

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Bhaaratiiy Samajavad Kii Ruparekhaa by स्वामी सत्यदेव परिब्राजक - Swami Satyadeo Paribrajak

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी सत्यदेव परिब्राजक - Swami Satyadeo Paribrajak

Add Infomation AboutSwami Satyadeo Paribrajak

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रोटी का सवाल ७ उसी पुस्तक में श्रागे चलकर हमने बुद्धिवाद के श्राचायं परम तपस्वी सन्त सुकरात के दशन पाठकों को कराये हैँ चर यदं बतलाया है कि ज्ञान-पथ पर चलने वाले यात्री को अपने 'ऊपर विश्वास कर, प्रकाश के लिये हृदय-द्वार खोल प्रत्येक वस्तु के गुण-दोष परखकर आगे बढ़ना चाहिये । च्यूँकि इन सब पुरुषार्थों का साधन नीरोग शरीर है, इसलिये पहले उसकी तन्दुरुस्ती के नियम जान लेने ्ावश्यक है । हमने उस मन्थ मे अपनी अनुभूति के आधार पर कई अभ्यायों में भिन्न भिन्न कसरतों का भी वणन किया है और इन्द्रियों को किस प्रकार सुरक्षित रखना चाहिये, इसके ठग भी बतलाये हैं; इतना ही नद्दीं बल्कि खाद्य पदार्थों के विषय में भी चर्चा की है । इसके बाद हमने बुद्धिवाद के असली स्वरूप को दर्शाया है । पहले मनुष्य की जिज्ञासा, दूसरा उसका परमावश्यक साधन शरीर, तीसरी बुराई-भलाई पहिचानने वाली बुद्धि श्रौर चौथी उस शरीर को शक्ति प्रदान करने वाली रोटी- जीवन के विकास की इन सीढ़ियों की मीमांसा हम उस पुस्त में कर चुके है, केवल रह गई थी रोटी, जिसके सम्बन्ध में इस पुस्तक में हम अपने विचार प्रगट करते हैं । वैज्ञानिक युग के पहले रोटी की मारामारी तो थी, लेकिन इतनी भीषण नहीं; समाज में विषमता तो थी, किन्तु उसमें सज्ञठित स्वाथ की मात्रा इस दुरजे तक नहीं थी; दृममें बुद्धि का विकास वो ठीक मात्रा में हुआ, किन्तु उसके साथ साथ उसी दरजे तक हम मानवता में अ नदीं बह अर्थात्‌ हृदय श्रौर मस्तिष्क काजो सुन्दर सम




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now