सिध्दार्थ महाकाव्य | Siddhartha Mahaakaavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
353
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८
क्योंकि सांसारिक वस्तुऑको इस प्रकार सम्बद्ध करना और इस प्रकारसे एक दूसरेकी
सुसङ्गति या तारतम्य बतलाना, जैसा कभी नहीं बताया गया है, कालान्तर
वह मानसिक स्थिति उत्पन्न कर देता है जिसके कारण भाव-चित्र भाव-चिहमे
परिवर्तित हा जात हैं । फठतः, यदि पुनः अच्छे कवि न उतन्न हुए तो भाषाकी
अभिव्यंजना-शक्ति रुक जाती है । इसीलिए कहा गया है कि, समाजकी
प्राथमिक स्थितियेमे प्रसेक लेखक कवि होता था; और अब भी अनुभूत
होता है कि प्रसेक नवयुवक कुछ न कुछ काव्यमय भाव रखता है । अपनी
प्राथमिक स्थितिमें.. समाजके तथा. नवयोवनमें मनुष्ये भाव निकय्तः
एक दही होति रै क्योकि माव एवं भाषा उस समय काव्यमय हो जाती है।
कवि किसे कहत हैं ? उसका कार्य क्या है ? वह किसे संबोधित करता है और
उस किस प्रकारे माध्यम अर्थात् भापराद्रारा सम्बोधित करना चाहिए 2--कविभे भावना-
दाक्ति अन्य मनुष्यांसे अधिक तीव्र होती है, उसका उत्साह ओर जीवनके प्रति भाव
अधिक उत्तेजित होता है, उसकी आत्मा अधिक उदार ओर विस्तृत होती दै ओर
वह जो कुछ कहता है अपनेको या अपने जेते दूसरे मनुष्यको संबोधित करके व्यक्त
करता है । वह अपनी दी रगात्मिका प्रत्र्तियोमे मग्र रहता है, जीवनक्रे विविध
अंगेंपर वह अपनी तीव्र दृष्टि डालता है, संसारकी गतिम जो मानव-प्रतरत्तिर्यो उत्पन्न
होती है उनको वह वाणी दता है ओर जा अद्य रहती हँ उनको प्रकाराभे लाता है ।
साथ दी साथ उसमे एक ओर प्रत्रत्ति होती है जो अ-कवि मनुष्ये नहीं पाई जाती,-
वह अनुपस्थित भावोंका भी चित्रण करता है और इस प्रकारसे करता है जैसे वे
उपस्थित दी दौ । वह् उन भावोको भी व्यक्त करता है जा केवल दूसरे लोगेंद्वारा ही
अनुभूत हुए हाँ और इसीलिए, उसमें अभिव्येजना इतनी अधिक मात्रामे उन्न हो
जाती है कि वह उन भावोंको, कारण न होते हुए भी, अपने हृदयमें उत्पन्न कर सकता
है। इस तरह, कविको सव-भूत-हृदय बनना पड़ता है ।
कविके हृदयमें सौन्दर्यकी पूर्णता भरी रहती है । वह सौन्दर्यकें शाइ्वत स्वरूपका
पहिचानता है । जहाँ सहदय श्रोताओंमें केवल भावयित्री प्रतिभा होती है वहाँ कविमें
कारयित्री प्रातिभा होती है जो उसी वत्रक्षके उसी बीजको उसी रूपमें उगाते हुए भी
विभिन्नता और नवीनता प्रदान कर देती है ओर, साथ ही, मनुष्यमें जो कुछ पवित्रता
है अथवा निसर्मे जो कुछ नैतिकता हे उसके साथ पूर्णं सहानुभूति ओर सहज सद्भाव
प्रकट करते हए महत्ता ओर उदारताको पूणं आदर देती है ।-- यदी नहीं, सारे संसारके
सौन्द्थं ओर महत्ताको एकत्रित करके वह एक अपना दी संसार खडा करती है । इस प्रकार
अपने लोकका निर्माण करके कवि संस्कृत और ओजस्वी माध्यमद्रारा सहृदय पुखूषोका
आकृष्ट करके उसमें बसाता है । मनुष्योको आकर्षित करनेके लिए वह अलंकारोंका
प्रयोग करता है क्योकि साधारण शब्द इतने निर्बल होते हैं कि वे गंभीर और
User Reviews
No Reviews | Add Yours...