सिध्दार्थ | Sidhdaarth
श्रेणी : पत्रकारिता / Journalism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
351
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नै
क्योंकि सांसारिक वस्तुऑको इस प्रकार सम्बद्ध करना और इस प्रकारसे एक दूसरेकी
सुसद्जति या तारतम्य बतलाना, . -जैसा कभी नहीं बताया गया है, कालान्तरम
वह मानसिक स्थिति उत्पन्न कर देता है जिसके कारण भाव-चित्र भाव-चिह्नमें
परिवर्तित हो जाते हैं । फठतः, यदि पुनः अच्छे कवि न उत्पन्न हुए तो भाषाकी
अभिव्यजना-शक्ति स्क जाती है । इसीलिए कहा गया है कि, समाजकी
प्राथमिक स्थितियेंमिं प्रत्येक लेखक कवि होता था; और अब भी अनुभूत
होता है कि प्रत्येक नवयुवक कुछ न कुछ काव्यमय भाव रखता है । अपनी
प्राथमिक ध्यितिम समाजकरे तथा नवयोवनभ मनुष्यफे भाव निकटतः
एक दी होते रै क्योकि भाव एवं भाषा उस समय काव्यमय हो जाती है।
कवि किंसे कहत हैं ? उसका कार्य कया है ? वह किसे संबोधित करता है और
उसे किस प्रकारके माध्यम अर्थात् माषाद्वारा सम्बोधित करना चाहिए. ?---कवकिमें भावना-
शक्ति अन्य मनुष्योसे अधिक तीव्र होती हे, उसका उत्साह ओर जीवनके प्रति भाव
अधिक उत्तेजित होता है, उसकी आत्मा अधिक उदार ओर विस्तृत होती है और
वह जो कुछ कहता है अपनेको या अपने जैसे दूसरे मनुष्यकों संबोधित करके व्यक्त
करता है । वह अपनी दी. रागात्मिका प्रदृत्तियेंमिं मम रहता है, जीवनके विविध
अंगेंपिर वह अपनी तीव्र दृष्टि डालता है, संसारकी गतिमें जो मानव-प्रदृत्तियोँ उत्पन्न
होती है उनको वह वाणी देता है ओर जो अस्य रहती ई उनको प्रकाशमे लाता है ।
साथ ही साथ यसमै एक ओर प्रत्रातति होती दै जो अ-कवि मनुष्यमे नहीं पाई जाती,-
वह अनुपस्थित भावोंका भी चित्रण करता है और इस प्रकारसे करता है जैस वे
उपस्थित ही हैं । वह उन भावोंको भी व्यक्त करता है जो केवल दूसरे लोगोंद्वारा ही
अनुभूत हुए हयौ ओर इसीलिए उसमे अभिव्येजना इतनी अधिक मात्रामें उत्पन्न हो
जाती है कि वह उन भावोको, कारण न होते हए भी, अपने हृदयम उयन्न कर सकता
है । इस तरह, कविको सर्व-भूत-हृदय बनना पड़ता है |
कविके हृदयम सोन्दयैकी पृणता भरी रहती है । वह सौन्दर्यके शाड्वत स्वरूपको
पहिचानता दै । जहौ सहृदय श्रोताओंमे केवल भावयित्री प्रतिमा होती है वहाँ कविमें
कारयित्री प्रतिभा होती है जो उसी व्ृक्षके उसी बीजको उसी रूपमे उगति हुए भी
विभिन्नता ओर नवीनता प्रदान कर देती है ओर, साथ दी, मुष्यमे जो कुछ पवित्रता
है अथवा निसर्गमे जो कुछ नैतिकता है उसके साथ पूर्णं सहानुभूति ओर सहज सद्भाव
प्रकट कसे हुए महत्ता ओर उदारताको पूर्णं आद्र देती है ।-- यदी नरह, सारे संसारके
सौन्दर्यं ओर महत्ताको एकत्रित करके वह एक अपना दी संसार खडा करती है । इस प्रक!
अपने लोकका निर्माण करके कवि संसृत ओर ओजस्वी माध्यमद्रारा सदृदय पुरुषों का
आकृष्ट करके उसमे बसाता हे । मनुरष्योको आकर्पित करनेके लिए वह अलंकारोंका
प्रयोग करता है क्योकि साधारण शब्द इतने निर्बल होतेह क्रि वे गंभीर और
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