साहित्य की भांकी | Sahity Ki Bhanki

Sahity Ki Bhanki by सत्येन्द्र - Satyendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( च ) मूल की भाँति वह नाम न जाने कितने थे गाम्भीय और शक्ति-शांलीनता को श्चपने लघु कल्लेवर में निहित रखता है । कवि और उसके साहित्य से समुचित परिचित होने के लिए इन नामों की उस व्याख्या की गहराई को नापना कितना आवश्यक है ! रस्किन ने कबियों श्रौर उनके द्वारा सात्य की अमर ञ्योति के अन्तदेशन छी प्रणाली पने 8088706 01 (४० 0 £8 ग6४8 प्रा; 68 नामक व्याख्यान में प्रतिपादित कौ थी। वां उसका अभिप्राय शब्द छी भाषा-वेज्ञानिक रूपान्तांगत शक्ति तक ही था। कुछ-कुछ उसने शब्द-शक्ति को भी लिया था। मिल्टन की एक कविता में आये हुए 766) 10प्पत€ श्रीर (एफ, इन शब्दों के महत्व में उसने पिछली बात को स्वीकार किया था। इससे श्रागे भी एक बात होती हे--प्रतीकों की व्याख्या । टेनीसन के सर गेलेद्रैड के शौये के अभी तामा ( रक्त-पात्र) की व्याख्या न तो भाषा-वैज्ञानिक विश्नषण से हो सकती दै; न शब्द-शक्ति की ध्वनि से। 0 को इतना महत्व क्यों दिया गया, उसमें उस महत्व की भावना कवसे ओर क्यों आयी ? इन प्रच्छाश्नों की संतुष्टि ऐतिहासिक दाशंमनिकता से ही हो सकती है । हिन्दी के कवियों 'औौर साहित्य को अध्ययन करने के लिए भी इसी प्रणाली की आवश्यकता है । हिन्दी साहित्य के इतिहास पर कड ग्रन्थ लिखे जा चुके हैं, कुछ विवेचनात्मक भी लिखे. गये हैं । उनके रहते हुए भी हिन्दी साहित्य के रूप का ठीक विकास सममभ में नहीं झाता । उसका




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