एक क्रांतिकारी के संस्मरण | Ek Krantikaarii Ke Snsmaran

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Ek Krantikaarii Ke Snsmaran by बनारसी दास चतुर्वेदी - Banarasi Das Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिस क्रोपॉटकिन : रेखा-चित्र १३ इसके बाद वह किस तरह किले की जल में डाल दिये गए, वहां उन्हे क्या-क्या यातनाएं सहनी पड़ीं, और वहां से बह किस तरह भाग निकले, इसका अत्यंत मनोर॑जक वृत्तांत पाठक इस पुस्तक में पढ़ सकते हैं । सन १८७६ से लेकर १९१७ तक ४१ वर्ष क्रोपॉटकिन को स्वदेश से बाहर व्यतीत करने पड़े । कठोर-से-कठोर साधना क। यह लंबा युग केवल उनके जीवन का ही नही, संसार के राजनैतिक इतिहास का भी एक महत्व- पूणं अध्याय हैं। इस बीच वह स्विटजरलेड और फ्रांस में भी रहे और दो- ढाई वर्ष के लिए उन्हें फ्रांसीसी जेल की भी हवा खानी पड़ी । उनके सभी महत्वपूर्ण ग्रंथ इसी यग में लिखे गए। इनमें कई तो ऐसे हैं, जिनका विद्वव्यापी महत्त्व है, जैसे 'पारस्परिक सहयोग' और “रोटी का सवाल' आदि । उनके क्रांतिकारी लेखों के भी कई संग्रह भिन्न-भिन्न भाषाओं में छपे थे और अनेक रचनाएं हिंदी में भी छप चुकी है । क्रोपॉटकिन ने लंदन में सन्‌ १८८६ में 'फ्रीडम' नामक पत्र प्रारंभ किया, जो अबतक चल रहा है। इसी वर्ष क्रोपॉटकिन के जीवन की एक अत्पंत दुःखमय घटना घटी, उनके बड़े भाई ने साइबेरिया से लौटते हए रास्ते मं आत्मघात कर लिया । उन्हें भी देश-निकाले का दंड दिया गया था, जिसके कारण बारह वर्ष उन्हें साइबेरिया में बिताने पड़े थे । जब उनके छृटकारे के दिन निकट आए तो उन्होंने अपने बाल-बच्चों को पहले ही रूस रवाना कर दिया और फिर एक दिन निराशा से अभिभूत होकर अपने-आपको गोली मार ली ! वह महान्‌ गणितज्ञ थे, खगोलशास्त्र के अद्भुत ज्ञाता थे, और ज्योतिष-दशास्त्र के बड़े-से-बड़े विद्वानों ने उनकी कल्पनाशील प्रतिभा की बहुत प्रशंसा की थी । महज आशंका के आधार पर उन्हें जारदशाही ने देश- निकाले का दंड दे दिया था, जबकि क्रांतिकारी दलों से उनका कोई भी संबंध न था ! यदि उन्हें स्वाधीनतापृवक अपने खगोल-संबंधी अनुसंधान करने की सुविधा होती, तो उस शास्त्र की उन्नति में न जाने वह कितने सहायक हुए होते । पर निरंकुर शासको में भला इतनी कल्पना-शक्ति कहां ! क्रोपॉटकिन




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