मुंशी साहित्य III, IV, V [गुजरातके नाथ ] | Munshi Sahitya III, IV, V[Gujranke Nath]

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प्रवासीलाल वर्मा - Pravasilal Verma

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मालवीय -Malviya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वृध्के नीचेके दो पुरुष १९ उस आदमीने जरा आगे सिर करके मछुएके कानमें कुछ कहा और काकने सुना किं उसके हाथमे कुछ टंक* दे दिये गये ह । ठुरत ही मछुएने ह्वार खोल दिया । उसका कठोर स्वर उस मनुष्यके प्रभु्वसे कौंपने लगा और बह बोला, “* अन्नदाता, दूँबे तो हैं। कहिए; तो बॉस बौँधकर डॉंगी बना दूँ। ”” ८९ ह; चल, जस्दी कर । ”' परन्तु सछुएको कुछ भरोसा नहीं हुआ, इस लिए वह अन्दर गया और दिया लेकर बाहर आया । दियेके प्रकादामें उसने देखा और तुरन्त दिया स्वकर वह अपने कामम खग गया | काक बहत विरिमत हा । उसने सोचा, या तो य माट्वाके जासू होंगे या कोई बड़े अधिकारी । यदि बड़े अधिकारी हैं, तो इस प्रकार अकेले चुपचाप क्यों भटक रहे हैं। उसे ऐसा गा कि अवदय ही ये कोई जासूस हैं और यदि ऐसा है, तो उन्हें इस प्रकार जाने देना उसे ठीक न मादूम हुआ । यदि कोई अधिकारी हैं, तो उन्हें भी रोकना उसे कुछ अनुचित प्रतीत नहीं हुआ । आखिर ये छोग कौन हैं, इसका विचार करता हुआ काक मछुए: और उन दो नुप्योंके पीछे छग गया । काकने उन्हें पीछेसे पहचाननेका प्रयत्न किया कि ये किस श्रणीके मनुष्य ह; परन्तु वह कुक भी निश्चय नहीं कर सका । अधघरी रात थी, इसलिए, वह पहने हुए. वख्त्रोंका मूस्य भी नहीं ऑँक सका । बड़ा मनुष्य, जिसने सफेद पगड़ी बाँध रखी थी, सतर होकर दृढ़ चालसे चल रहा था | उसका सिर गौरवसे उठा हुआ माठूम होता था। फिर भी ऐसा प्रतीत हुआ कि वह अपने छोटे साथीके प्रति उगदरका व्यवहार कर रहा है। काकने सुना था कि उबकके साथ माख्व-पतिका भाई नख्मा भी सेना-सहित आया है । वही दोनों तो ये नहीं हैं? और ये दोनों अकेले आये हैं, तो क्या पाटनका रक्षक इनसे मिल गया है ? सजन मंत्री क्या दगाबाज़ हो गया है ? डॉंगी तैयार हुई और मछुएके साथ वे. दोनों उसपर जा बैठे । मछुआ वाँससे पानी काटने छगा । कुछ दूरसे काक भी पानीमें जा कूदा और धीरे घीरे निःदाब्द उस डॉगीकी दिशामें तेरने लगा । काकको सीघे जाना ज़रा कठिन प्रतीत हुआ; कारण कि सरस्वतीका जट बड़ प्रचरु वेगसे बह रहा था । * उस समय चलनेवाछे सोने और चॉंदीके सिक्के |




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