छायावाद युगीन काव्यभाषा का निराला के विशेष सन्दर्भ में अध्ययन | Chhayavad Yugin Kavyabhasha Ka Nirala Ke Vishesh Sandarbh Men Adhyayan

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Chhayavad Yugin Kavyabhasha Ka Nirala Ke Vishesh Sandarbh Men Adhyayan  by रेखा खरे - Rekha Khare

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(८) विश्वसनीय बना सकती है । व्यक्तित्व की सजनात्मकता को उत्तरौत्तर गतिशीछ बना रहते वैसे के फिए यह आवश्यक है कि उति अलात, अगत संमावनालों से निपटन दिया जार | शब्द-संसार के प्रति यह विद्ौहन्माव कौई राता नही पैदा कनिवाछा £, हयै माधा के प्रमुत्व कै प्रति भिष्ठावान्‌ टाबर भिस्वैट ने बहत जात्म विश्वास क पाथ यदू किया ह 1 ए माधा कै प्रति विरौषी जौर निधयैवात्मक दृष्टिकौणा खवा मी उपति असग नही हौ सक्ते, क्यौकि माघा जठग होने का मत्छव है ~ जीवनं धै छग हौनय, रीवन फ अुमव का शै अपमान करना । इ संदर्प धं लब निस्वैट तै वही पमाया प्रकट की है कि माणा के प्रमुत्व के चिरौधी रक दुसरे स्तर पर उसके परंपारित रुप सै भिन्न मई प्रभाव -सवियौ की घुष्ट उपै करत है 1 २ यह ठीक थी है, क्योंकि शब्दों कौ ठैकर मूर्णता और उप॑तौष का' अतुमव कतैवाठा ही कुछ नया रचने की क्षमता रख सक्ता । माधा के साथ उसकी गछरी संसक्ति पी ही स्स्थिततियाँ सै देसी जा सकती है | अधुनिक युग मैं, जकि सैचाए माध्यमं शडियी+ सितिमा, टैठी विजन, तपाचारनपत्र बादि - और राजतिक सतालों के माष्नणो मैं शब्दों की याकि अवृत्तिके द्रा भाग त प्रति षर्जनात्मक दुशष्टकौण का ह्वात हो रहा है, काव्यमाणा की अतिरिक जिम्मेदारी ही जाती है कि कह अपनी मित- कथन प्रणी मै शब्द -अवमुल्यन की बढ़ती हुईं प्रवृत्ति की रोकथाम को । काव्यमाणा की यह -एवनात्मक ओर सल्यवान_कौशिश शब्द-कमूल्यन के पर्रैक्य भैं दाति-पूर्ति प कथिक हौगौ । जि तिरि तिति कि नित तिति पन पो णिति नि निनि ति सनि ति नि ति नितिन नि निति लाए ति ने. पी? कचरा शत ८७0१६ अदद द धात वदत 6 हक जि 9 +य द , १ (कि, कतत वि छतत 1975 ६० च 8 छा ९1058 ६० ३६४६, ४ ००११ ५ ६5 1088287 अत #†१७२ शभ { 9 अभक्त व शा भाधो 4) 9 (860८७) ४ 33 9 £ ६१८४७ 9 £ १४6 न 1० 2 वशति © ६८७ ‰9# 1१ ॐत 315 8689068 + भोः6 २6 ७२ £ £5 श्रध छापे फेज त ५ 1... शी द 4 धाभ 15७5 26 ॐ66 ६० 26 ४१८२ ॐ ४039 015 क 329 92995 0 शतक उठने पके) न २२ ४2 099 00 दह 9 शद 29770१52 ७9१ कै कै शः




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