आपस्तम्बधर्मसूत्र का समीक्षात्मक अध्ययन | Apastambdharmasutra Ka Samichatmak Adhyan

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Apastambdharmasutra Ka Samichatmak Adhyan by हर्षवर्द्धन मिश्र - Harsharddhan Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-‡ 2 ~ गरस हे । इल स्बध पे यह कहा जा सकता है कक सुत्रों को व्यर्वा स्थत रुप में सधिप्त शैली में प्रस्तुत कणा जाता है ग जससे उसे याद पक्या जा सके, चे ही स्यन्टता अर वोगन्यना का बलिदान करना पडे। वेयकरणं पतञ्जलि का यह क्न पराय उद्घृत त¢क्या जाता है कि सूत्रकार आधी मात्रा की बनवत पर उतना ही आनिन्दत होता ई जितना वुत्रजन्म पर । सूत्र रवना आओ की हती के गवक्य मे जितने जआतोचना क्यों न हा,इस पविषय मे दो मत नहीं हो सकते #क मौखिक उपदेश के समय इनकी स्चिप्त शैली एक आवश्यकता बन गयी है और इनकी वाशिष्ट शेली के कारण ही इनमें से अधिकांश की रक्षा दते सकी, अन्यथा लेखन के अभाव में इनका सरवधा लोषहो हो ग्या होता । इसके ऑर्तार क्त प्रावीन व्याकरण के चनमा को श्ुण्प बनाये रखने जं सत्र रती एक महत्वघूर्ण कारक बनी अन्यथा व्याकरण सनधी भनयम्परे के जान के अमाव में वेदिक साहित्य का अर्धवीोध असम्भव धा । वस्तुत. सत्र साशहत्व म अनेक शताब्द्या के ज्ञान का अण्डार एकत्र क्या गया है । वे शर्तारिव्दियों के शैवन्तन, मनन ओर अध्ययन के बारिणास हैं और उन्हें जो रख बाप्त हुआ हे




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