प्रकरण वक्रता का सिद्धान्त और कालिदास तथा भवभूमि की कृतियों में उसका विवेचन | Prakaran Bakrata Ka Sidhant Aur Kalidas Tatha Bhawbhuti Ki Kritiyon Me Uska Vivechan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काव्यालइ्क्रार में अनेक प्रसड़गों में भामह वक़ता अथवा वक्रोविति तत्व की चर्चा करते हैं। एक स्थान पर उन्होंने बड़ी स्पष्टता से कहा है कि वक्रता से परिपूर्णं शब्द ओर अर्थ ही वाणी को रमणीय बनाने में समर्थ है। ' | इस कथन से यह भी स्पष्ट हो जाता हे कि आचार्यं भामह वक्रता को उभयपक्षीय मानते थे - शब्द - वक्रता ओर अर्थ-वक्रता । इस प्रकार वक्रोक्ति के सन्दर्भ मे भामह की उद्भावना अत्यन्त मौलिक, समीक्लात्मक साथ ही साथ व्यापक भी है । आचार्य दण्डी काव्यादर्श के लेखक ओर भामह के परवती है । वह भी अतिशयोक्ति को ही काव्यसर्वस्व मानते हे । अतिशयोक्ति को आचाय दण्डी अलङ्कारो के वैचित्र्य का सर्जक मानते हैं; “ परन्तु आचार्य दण्डी की यह अतिशयोक्ति भी वक्रोक्ति से भिन्न नर्ही है । हॉलाकि, दण्डी भामह की तरह स्पष्ट शर्ब्दं भे अतिशयोक्ति ओर वक्रोक्ति का तादात्म्य नहीं स्थापित करते, परन्तु वेचित्रयमूलक अलङ्कारो को वह वक्रोक्ति वर्गं भँ भी रखते हैं । जैसा कि काव्यादर्श के एक टीकाकार ने स्पष्ट किया हे। ‡ ऐसा प्रतीत होता है कि भामह के साथ प्रतिस्पर्धा होने के कारण ही दण्डी ने अपना मत-वैभिन्न स्थापित करने के लोभ से शब्दों को तोड़-मरोड़कर प्रयुक्त किया हे, परन्तु काव्यादर्श मैं उपलब्ध स्वाभावोक्ति, अतिशयोक्ति और वक़ोक्ति या प्रसड़ग पढने के अनन्तर यही निष्कर्ष निकलता है कि आचार्य दण्डी भौ भामह के ही समान वक्रोक्ति को काव्य का एकं व्यापक क्त्व मानते है । [ ष ष ष षा षः ष ष ष ष ष त ष ष बोध... मकन्क... व्ययक... बकमिग्य... बाय षः ष ष षः ष षः ष ष ष ष ष ष त त त ष ष ष 1 म कु अ. अआ. अआ आ अ. | रि ष . अ. अ. । ~ वाचाम्‌ वक्रार्थशाब्दोक्तिरलइकाराय परिकल्पते । - काव्यालड्क्रार 5/66 2- असावतिशयोक्ति : स्यादलडइकारोत्तमायथा - काव्यादर्श 2/2/4 3~ वक्रोवितिशब्देन उपमादयः संकीर्णपर्यन्ताः अलङ्कारा. - काव्यादर्श [हृदयडइगमटीका], प0 202




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