हिन्दी राष्ट्र या सूबा हिंदुस्तान | Hindi Rastra Ya Suba Hindustan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
96
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ राष्ट के लस
है। परिवार में एक व्यक्ति कमा कर लाता हैं. तथा दूसरे लोग
उसका उपयोग करते है ¦ वच्चे व घुड्ढे बिना कुछ सहायता दिये ही
व्यय करते हैं, लेकिन इस कारण उनसे कोई ट्रंप नहीं करता ।
सम्पूखं परिवार के लिये अन्त मे जो वात लाभकर होती है उसी
पर सब लोगों का ध्यान रहता हैं । ठीक यही अवस्था राष्ट्र की भी
है । प्रत्येक व्यक्ति अपनी अपनी शक्ति के अनुसार राष्ट्र के कार्य
में सहायता देता है, अर उस व्यक्ति की साधारण आवश्यकताओं
को पूर्ण करने का भार राष्ट्र पर रहता है । राष्ट्र में भी इुछ लोग
पंजी के समान होते है ओर छुछ को पेन्शन देनी होती हैं । हानि-
लाभ की विभिन्नता का यह तात्पय नहीं है कि एक राष्ट्र दूसर राष्ट्र
से लड़ता रहे । प्रत्येक परिवार का आय-व्यय अलग होता है
किन्तु इस कारण से परिवारों में आपस में भकगड़ा रहे यह आव-
श्यक नहीं है । हाँ, यदि एक परिवार के लोग किसी दूसरे परिवार
के घन की छोर कुद्ष्टि से देखेंगे तो मगड़ा होना स्वाभाविक है ।
तीसरा लक्षण : राज्य को एकता
जैसे देश राष्ट्र का शरीर है वेसे ही राज्य-शक्ति राष्ट्र का शारी-
रिक बल है । राष्ट्र के प्रत्येक चंग को नियमित रूप से चलाने और
सुरक्षित रखने के लिये राज्य-शक्ति नितान्त आवश्यक है । यदि
राष्ट्रका अपना दद् राज्य नहीं है तो राष्ट्र का प्रत्येक अंग निर्जीव
हो जायगा, देश के टुकड़े टुकड़े हो जायेंगे और सम्पत्ति अन्य
राष्ट्र छीन लेंगे। राष्ट्रभाषा मरने लगेगी; धम का नाश होने
लगेग तथा सामाजिक सज्ञठन जड़ से हिल जायगा ¦ जिस राष्ट्र
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