हिंदी साहित्य विमर्श | Hindi Sahitya Vimarsh

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Hindi Sahitya Vimarsh by धनकुबेर कारनेगी- Dhankuber Karnegi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{७ - रँच-मापाके सावेमौम आधिपत्यकों “उन्होंने भी स्वीकार क्रिया । जमेनीके प्रसिद्ध तच्ववेत्ता लेचीनी जने फ्र च-भा पामें- दी अपने दुशेन शाकी रचना कौ । अर्मन-माषाको उन्होने कडाचित्‌ अनुपयुक्त समका ।. पर उसौ भाषमें दशन-शास्त्रकी रचनाफ़र ऊन्टने जक्षय कीर्ति प्राप्त की हि । . जाज-कल तो विज्ञानोंकी यह घारणा है कि दु्न-शाख्रके लिए सबसे उपयुक्त जमन-मापी टी है । लूथरने जर्मनीको धार्मिक स्वतन्त्रता दो भौर कन्टने यहाँ - ।षाका र्वराज्य स्थापित किया । तवसे जमेन-सादित्यकी जो उन्नति हुई है चद चिठक्षण है । सारतव्षेमें हिन्दु-साप्नाज्वफा अन्त दोनेपर संस्छृतका आधिपत्य हिन्दू-घर्मपर रद्द गया । मुखख्मानोफि शासन-कारमें सज-भापा होनेके कारण एारखीका दिश्चेष प्रचारः हणा । भँस- रेज्ञॉंका प्रभुत्व द्वोनेपर अँगरेज्ञी भाषते समाञ्नपर भी अपना आधिपत्य ष्य पिति कर लिया है। शिक्षाक लि वदी एक उप सुक्त भाषा. मानी गई है। इसका फल यद हुमा कि दशके शिक्षितो का ध्यान अगरी भाषाकी ही ओर आषृष्ट दै । अंगरेज्े मापाके माया-जारको तोड़कर वद्धालके शिक्षित समाजत्ते जपने देशमें एफ नवीन सादित्यक्री सष्रि की है। इस सादित्यकी उत्तरोत्तर उन्नति दो रही है। हिन्दी भी अव अपने प्रान्ते सर्व॑ मान्य दो रही है। परन्तु अमो उसे दुखतरी भाषार्ओका साधय दण करना पड़ता है । पृथ्वीपर जव जव किसी नवीन धर्मक प्रचार इभा है चव तव




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