अपरिग्रह : मानव जीवन का भूषण | Aprigrah Manav Jeevan Ka Bhushan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
366
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)म्रपरिग्रह् : विचार | [ १३
समय या पुण्य की हीनता से उन वस्तुप्रौ को छूटती हुई जानकर घोर कष्ट का
अ्रनुषव करता है। शास्त्र के कथनानुसार महापरित्रही को मरते समय श्रात्त-
रौद्र ध्यान श्राता है, जो दुगेति का कारण है । इच्छा परिमाणब्रती श्रावक के
पास ऐसा दुःख कभी नहीं फटकता ।
एक सघन वृक्ष है । उसका सहारा एक बन्दर भी लेता है श्रौर पक्षी भी ।
पक्षी भ्रपने पसो के आश्रय पर रहता है, वृक्ष के साथ उसका लगाव नही होता,
ग्रतएव वृक्ष के गिर पड़ने पर पक्षीको दुःख नही होता परन्तु बन्दर वृक्ष को
ग्रपना मानकर रहता है, अतएव वृक्ष के गिरने से बन्दर को बहुत दुःख होता है ।
यही श्रतर इच्छा परिमाण ब्रतधारी श्रावक मे श्र ब्रत न लेने वाले परित्रही में होता
है । इच्छा परिमाण करने वाले को श्रपनी मर्यादा से गृहीत पदार्थों का झाधार
छूट जाने पर भी पक्षी की तरह दुख नहीं होता क्योकि वह उन पदार्थों पर भी
उतनी ममता नहीं रखता जिससे दुख हो । इच्छा परिमाण न करने वाले को
पदार्थो के छूट जाने पर बन्दर की तरह बहुत दुख होता है ।
इच्छा परिमाण त्रत
इच्छा परिमाण ब्रत का प्रथं है--घन-घात्यादि पदार्थो की इच्छाको
मर्यादित करना, सीमित करना । सम्पूणं भ्रपरिग्रह त्रत को श्रगीकार करने वाला
तो संसार के समस्त पदार्थो पर से इच्छा श्र सूर्च्छां का त्याग करता है लेकिन
इच्छा परिमाण त्रतधारी को संसार के समस्त पदार्थों पर से इच्छा-सूर्च्छा का
त्याग नही करना पड़ता । उसे उन्ही पदार्थो पर से इच्छा-मूर्च्छाका त्यागं
करना पड़ता है जो पदाथं महा परिग्रह् में माने जनतेहै या जिन पदार्थो की
इच्छा निकृष्ट है, दसरो के लिये घातक है ।
इच्छा परिमाण त्रत के ग्रहणकर्ता को इस बात का सकल्प करना होता है
कि वह इन-इन पदार्थों से अधिक पदार्थों पर स्वामित्व का ममत्व नही रखेगा,
न उन पदार्थो के अतिरिक्त किसी पदाथ की इच्छा करेगा । श्राशिक रूप से
परिय्रह से विरत होकर महापरिग्रही न होने की जो प्रतिज्ञा ली जाती है, उसे
भी इच्छा परिमाण ब्रंत कहते है ।
इच्छा परिमाण त्रत का उद्देश्य दुनिया भर के समस्त पदार्थों की विस्तृत
इच्छाओं से अपने भन को खीचकर एक सीमित दायरे मे कर लेना है । इच्छा
परिमाण मे मर्यादा जितनी कम होगी उतना ही दुख श्र संसार-भश्रमण कम
होगा । क्योंकि उसका ध्येय तो एक दिन परिग्रह या इच्छा का स्वेथा ८
करने का होता है । वह श्रपनी मंजिल तक तभी पहुँच सकता है, जव ६
सूर््छां को न्यून से न्यूनतम कर लेगा । श्रावक का उद्देश्य इच्छा और
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