स्वामी रामतीर्थ : मृत्यु के बाद या सब धर्मों की संगति (एक वाक्यता) | Swami Ramtirth : Mrityu Ke Bad Ya Sab Dharmon Ki Sangati (Ek Vakyata)

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Swami Ramtirth : Mrityu Ke Bad Ya Sab Dharmon Ki Sangati (Ek Vakyata) by स्वामी रामतीर्थ - Swami Ramtirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खत्यु के वाद. ५ दरसल दुनिया मे सारी प्रगति ( 0101988 ) प्क चक्रमे या गोलाकार दैं। यह देखो, तुम ज़िन्दा दो; दुम मरते दो । सृत्यु के चाद की यदद दुशा कया सदा बनी रदेगी ? तुम्हें सा कन का कोर शिकार सही है । इस प्रकार फा ययान करना प्रकृति के नियमों के विरुद्ध हैं । जब तुम कहते हो कि सार्यु के घाद अनन्त नरक भोग टे श्रोर जीवन बिलकुल नदीं है,तव तुम संसारके संचालक रूप श्रति कठोर नियमो की श्वक्ता शुरू कर देत दो । तुम्दे पेसी वातत कटने का कोई ध्रधिकार नही है । मयुप्य के मरने के वाद, यदि पस्मश्वर इसे सदा के हि ये नरफ में डाल देता हैं, तो बढ परमेश्वर चढ़ा ही वेरशील है । एक मनुष्य श्रपनी ७० साल की ज़िन्दगी देर करके ( वित्ताकर ) मर जाता है । विचारे को ठीक प्रकार की शिक्षा पाने के 'छावचसर नद्दीं मिले; अपने उन्नत करने के उचित उपाय उस के हाथ नहीं लगे । दीन माता-पिता से उस का जन्म हुआ था, जो उस शिक्षा नददीं 'दे सके, जो उसे किसी देवल--स्थान वा घस्मे-सम्प्रदाय में नीं ले जा सकफे, मौर वह चिचारा मर गया } इस मदुष्य के पाल हला क र्त से रञ्जित्त टिकट नहीं था । तो क्या यद मनुष्य सदा के लिये नरक में डाल दिया जायगा १ झरे ! . जो परमशवर एसा करता दै वष्ट क्या छत्यन्त प्रति दिसा- -परायण्‌ ( थत्तिकार परायण घा बदला लेने वाला ) नदीं दै १ न्याय क नाम में इस प्रकार का बयान करन का उस्दे कोई झ्धिकार नहीं हे! चेदान्त के श्रज्नुसार, मर जाने के बाद किसी मनुष्य का सदा सुदौ .चना रहना आवश्यक नदीं है! भरत्येक सत्यु के घाद्‌ जीवन हे. शरोर प्रत्येक जीवन के बाद खत्यु । जार वास्तव मे शत्यु पक नाम सात्र दे । हमारा उसे चदा जूञ्ग ( 1४४०0) चना देना भारी भूल ष्टे । उस से कुछ ्




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