जैन तत्वसार सारांश | Jain Tatvasaar Saaransh

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Jain Tatvasaar Saaransh by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जप जे उजमणा किया, तथा घम्माभाई पानाचंदभाई मोतीभाई सबने चतुथे त्रत ग्रहण किया. से, १९७५-७६ दो चोमासा कर के आपने विहार किया. बाद मे वडोदा पघारे, वहां पर श्री संघ के श्राप्रह से सं. १९७७ का चौमासा किया, वहां पर रतलामवाक्ते सेठजी दर्शनाथ अयि ये, श्रौर उन्होंने रुपया और नारियल की प्रमावना की. वाद शाप विहार कर के :्ह्टमदावाद, कपडबेज, रंभापुर, मावा हो कर रतलाम पधारे, श्मौर श्री संघ के श्राप्रह से सं. १९७८ का चौोमासां रतलाम किया. वदां पर उप-. धान हुआ, उस समय एक बड़ी सभा की गई थी, ओर महाराजा रतलाम नरेश सजनसिंगजी श्राप की मुलाकात कै व्यि एवं दर्शनार्थं पधारे थे और साधु साध्वी पांच को दीक्ता द्र; वहां से विहार कर के इन्दौर पधे, वदां पर श्री संघके श्यग्रह से सं. १९७९ का चोमासा करिया ओर भगवती सञ्च वांचा, उपधान हश्रा, वहां रतलामवाली सेख्णाजी श्रये थे उन्होंने रुपया और नारियलकी प्रभावना कौ; ओर वहां पर श्री जिनकपाचद्र- . सूरि ज्ञानभंडार इस नाम से ज्ञानभंडार स्थापित क्रीया. बाद मे महोपाध्याय वाचक, पंडित वंगेरे पदवी दी गई. वाद मे विहार कर के मांडवगढ श्री संघ के साथ पधार, वहां से भोपावार, राजगढ़ वगरे यात्रा करते .हुए खाचरोद हो करके शेमलीयाजी पधरे, वाद्‌ मे सेकाना पारे, शरोर वहां के दरवार के धर्मोपदेश सुनवा करके चाद मेँ प्रतापगढ पधार, योर वहां से मन्दसोर पधार, सं. १६८० का चीमासा मन्दसौर कीया, वहां से विहार कर के नीमच, नीवाडा, चित्तोड हो कर के करेडा में श्री पार्धनाथस्त्रामी की यात्रा कर के देवलवाडा दोते हए उदेपुर पधार, वहां से कलकत्तेवाले वादु चम्पा- खलजी प्यारेलाल के संघ के साथ केशरीयाजी पधारे, आर वहां से आ कर के ` सघके आमहसे सं. १६८१ कां चोमा उदेपुर मे करिया. यणा २५के.खाथमे चौमासा बाद विद्दार कर के राणकपुर, नाडाल वंगेरे तीर्थेकी यात्रा करते हुए जालोर पधारे, वहां से विद्दार कर के वालोतरा पधारे सं, १९८२ का चौमास -वालोतरा में कीया. वाद में श्री नाकोडा पाश्चनाथस्वामिकी' यात्रा करते हुए :.बाड़मेर पधारे, वहां से संघ के साथ जेसलमेर पधारे, वहां: पर यात्रा कर




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