हिन्दी के आधुनिक महाकाव्यों में भारतीय संस्कृति का स्वरूप | Hindi Ke Adhunik Mahakavyon Men Bharatiy Sanskariti Ka Swarup
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
76 MB
कुल पष्ठ :
432
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पश्चिमी माँतिक वैज्ञानिक सस्कुति के सम्पर्क से मारत ने अपने फ्राचीन मुल्यों ,
दाशैनिक पदतियाँ, आ प्यात्मिक चिन्तन काँ परीक्षित कर उस सारः कौ गृह्ण
क्या जौ वर्तमान मैं जीवन्त है या वर्तमान कौ स्फरिति कटने की सम्मावना-मुक्त
है या कति पश्िमी चुनौती के जवाब यै गर्वं सै कुस्तुत किया जा सक्ता है । इस
दुष्टि से पुनजनिएण के बाद मारतीय सस्कृति का स्वफ्प निश््क्ति हता है ।
(हमारा यह मन्तव्य कदापि नी है -कि सुनजगिरण मैं स« कुछ उपलब्ध किया जा
चुका ह» शन सांस्कृतिक -छष्त् कौ कौर नवीन मुल्य अन्वेधित नहीं करने हैं 1)
वैदिक संस्कृति, बौद्ध सस्कृति, हस्ठामी अथवा हिन्दु सस्कृति के स्थान पर् इस
घर्मनिरपेदा राष्ट्रीय सस्कृति कौ ^मारतीय सस्कृति कहा जा सक्ता हे । यह ˆ
माएतीय सस्कृति, धर्प के समान अविरीधी है तथा समस्त माएतीय जनता की -विर्वविः
साधनाओजाँ की स्वात्तत परिणतति है । वैदाँ मैं जिसे गौस्प श्तथाराँ का करना
कहा गया है, वैसा ही यह मारतीय सस्कृति का करना पुनजगिरण में देश में
पवा स्ति इग 1 एष्टीय अम्युत्थान का पृत्थैक आन्दौटनं इस अन्विति क्छ दै
सिंचित हुआ है ।
पुनजगिएण का अर्थ मारतीय चिन्तन के पुनरु त्कानवादी स्वरूप की
अभिव्यक्ति ठेना; इस शब्द के वास्तविक अभिप्राय की संकृचित करना है । जैसे
पन्दुषवीं श्ताव्दी मैं इटी के पढ़िताँ और कलाकारों ने युनान और रोम की
सास्कृतिक विरासत की खज की, वैसे ही सनन्त सै पुारम्म हतै वाहे
समस्त गौ द्विक वान्दोलनां का ठदय प्राचीन पण्डार की खज था -- यह रकान्त
सत्थ हैं । 7 4१।श्वलिज्म- शब्द से वर्तमान सत्य कौ उपेधित कर मुतकाल की
युवा नातां कौ दुहरानै कौ ध्वनि ६.1 है, जब कि उन्मीस्वीं शताव्दी के
१- चर्ोक के फुर+पु०६०-- ह्जारपुखाद प्विदी
२ मालीय = का श्तथार् करना, साप्ताहिक -+ पद्ध४८ ) ४अन्छरब् ६४
-- व +. ६प्; अमृवाल
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