अपोहवाद सिद्धान्त का समीक्षात्मक अध्ययन | Apohavad Siddhant Ka Samikshatmak Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
277
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अनिल कुमार सिंह - Anil kumar Singh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सवृत्ति सत्य वास्तविकता का श्रातिमय पक्ष है और सावृत्त सत्य चरम स्वरूप है। इन दो
वास्तविकताओं या 'दो सत्यों' ने पूर्व के मतवाद के 'चार सत्यो' का अधिक्रमण कर दिया। नवीन
बौद्ध दर्शन म एक अन्य विशेषता भी पाई जाती हे, जिसमे अनुभूत जगत एव निरपेक्ष कं बीच, संसार
एव नेर्वाण कं वीच पूर्णरूप से समान शक्तित्वं कं सम्बन्ध का सिद्धान्त पाया जाता है। प्रारभिक
बौद्ध मत कं समस्त धर्मो को जिन्हे केवल निर्वाणमे ही प्रसुप्त किन्तु साधारण जीवन मे सक्रिय
सस्कार माना गया था। यहा चिर प्रसुप्त ओर उनकी सक्रियता को कंवल एक भ्रम माना गया| यह
अनुभूत जगत केवल एक भ्रमात्मक प्रतीति है जिसकं नीचे साधारण मनुष्यो कं सीमित बोध के लिए
निरपेक्ष अपने को अभिव्यक्त करता है। अत दोनो के तल मे कोई अधिक अन्तर नही है| निर्वाण या
निरपेक्ष चिरत्व कं रूप म दष्ट जगत (स्वभाव काय) के अलावा ओर कुछ नही हे। निरपेक्ष सत्य के
इस रूप क] साधारण अनुभवात्मक आयतनो के द्वारा ज्ञान नही हो सकता। इसीलिए निरपेक्ष या
चरम बोध कं लिए अनवस्थित विचार की विधियो या उनके परिणामो की सर्वथा निष्प्रयोजन होने कं
रूप मे आलोचना की गई है। अत समस्त न्यायशास्त्र तथा साथ दही साथ प्रारभिक बौद्ध दर्यन की
सभी धारणाओं, उसके बुद्धत्व, उसके निर्वाण, उसके चार आर्यसत्य आदि की कृत्रिम और परस्पर
विरोधी होने के कारण इनकी आलोचना की गई। सत्य ज्ञान केवल अर्हत का योगिक ज्ञान एव उन
नवीन बौद्ध धर्मग्रथो द्वारा उद्घाटित ज्ञान है जिसमे जगत ससार) का एकतत्वात्मक दृष्टिकोण ही
उसकी विषय वस्तु है। नवीन वौद्ध दर्शन की यह एक और विशेषता है, जिसमे समस्त न्यायशास्त्र
की आलोचना की गई है एव योग तथा बौद्ध धर्म ग्रथो से उद्घाटित ज्ञान को सत्य माना गया है।
कुछ समय पश्चात उदारपथियों का सौतात्रिक सप्रदाय सापेक्षतावादियो के वर्ग से अलग हो
गया | सौतान्तिक सप्रदाय ने अपने के तार्किक समर्थन के न्याय को स्वीकार कर लिया । जिसमे फिर
भी उन सभी आधारभूत सिद्धान्तो के आन्वीक्षिकी विनाश सम्मिलित थे। जिस पर ज्ञान आधारित है।
मोक्ष कं मार्गं के सदर्भं मे हीनयान की अपेक्षा महायान को अत्यधिक महत्व दिया गया
क्योकि हीनयान का आदर्श स्वय को मोक्ष प्राप्त कराना था ओर महायान का आदर्श समस्त प्राणियों
को मोक्ष प्राप्त करना था। अनुभव जगत को इस आशय मे एक छायात्मक वास्तविकता माना गया
कि पारमिता और महाकरूणा के अभ्यास के क्षेत्र के रूप मे यहा धर्मकाय * की प्राप्ति के लिए एक
अभ्यास हे । अमलाप्रज्ञा को जो अर्हत के धर्मों मे से एक भी, अब प्रज्ञा पारमिता के नाम से ज्ञानकाय
के एक पक्ष के साथ मिला दिया गया जिसका द्वितीय पक्ष स्वभावकाय था। भगवान बुद्ध अब मनुष्य
नहीं रहे बल्कि सभोगकाय के नाम से वे एक वास्तविक ईश्वर बन गये। लेकिन फिर भी वे जगत
User Reviews
No Reviews | Add Yours...