त्याग - पत्र | Tyag Patra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)त्वामव ११.
2 5
रशा है । वह मेरे सामनेसे होकर अपने कमरेमे चली गई।
जाते जाते द्वारपर रुकीं और जोरसे पने हाथके बेतको
दालानमें फेक दिया । बेंत मेरे पास छाकर गिर गया )
मेरी कुछ भी समझमें न श्रा रहा था | में सकपकाया-सा
खड़ा था । थोड़ी देर बाद में साहसपूर्वक उस कोठरीमें गया।
देखता क्या हूँ कि वहाँ बुझा आंधी हुई पड़ी हैं । उनकी
साड़ी इधर उधर हो गई है श्रौर बदनका कपड़ा बेहद मारसे
सीना हो गया है । जगह-जगह नील उभर श्रांय हैं । कहीं-
कहीं लद्र मी छलक श्राया है । बुझा गुम-सुम पड़ी हैं । न
रोती है, न सुवकती है । बाल निखरे है श्रौर धरर्तापर पढ़ी
दोनो बोपर माथा टिका है । मुमे वहीँ थोड़ी देर खड़ा रहना
भी असह्य हो गया । सुमते कद्ध भी नदीं बोला गया । बुझाके
गलेसे लगकर मैं वहाँ थोड़ा रे लेता तो ठीक होता | पर वह
संभव न हुआ | मैं दबे पाँव लोट आया ।
वह दिन था कि फिर बुझाकी हँसी मैने नही देखी ।
इसके पौंच-छुद्द मद्दीने बाद बुझाका ब्याह हो गया । मेँनि
जल्दी-जल्दी तत्परताके साथ सब व्यवस्था कर दी । बुझाका:
उसी दिनसे पढ़ना छूट गया था । वह उस दिनसे सीने-पिरोने,.
काइने-बुद्दारने और इसी तरहके और कामोंमें शांत भावसे
लगी रहती थीं । काम करते रहनेके अतिरिक्त उन्हे श्योर
किसी बातसे मतलब न था । न किसीकी निगाहर्मे पड़ना
चाहती थीं । कपड़ा कोई घोनीका घुला नया पहनतीं तो उदे
जल्दी मेला भी कर लेती थी । मुस वह तब बची-बची
User Reviews
No Reviews | Add Yours...