सम्भाजी | Sambhaji
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
50.86 MB
कुल पष्ठ :
793
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घोड़े पर बैठ गयी। उसने घोड़े को एड लगाकर लगाम को पीछे की ओर खाींचा। रात की उंडी हवा और गहरे अँधेरे में उसका घोड़ा रायगढ़ की ओर दौड़ने लगा। गोदू मानो हवा पर सवार हो गयी थी । रास्ते में पड़ने वाले पेड़ों नदी नालों झरनों आदि की उसने कोई चिन्ता नहीं की रिकाब में दृढ़तापूर्वक पैर टिकाए पीठ को झुकाकर पेट के बल पर झुककर रिकाब के आधार पर वह आधी खड़ी हो जाती थी। चल मेरे बहादुर घोड़े और तेज दौड़ो कहकर चिल्ला उठती थी । घोड़े के मुँह से झाग निकलने लगी थी और छींटे उसके मुख पर पड़ रहे थे। देखते-देखते गोदू पाचाड़ गाँव की सीमा पर जा पहुँची । रात समाप्त हो रही थी। पहाड़ की नुकीली चोटियाँ किले का पहरे वाला मचान हिरकणी बुर्ज कीकण दिवे का ऊँचा पहाड़ सभी पहाड़ों की कतारें पहाड़ों की ऊँची चोटियाँ अँधरे में से अपना सिर ऊपर उठा रहे थे। बापू। थोड़ी देर पहले अपने घर के पिछवाड़े किसी जानवर के पाँव की आहट सुनाई पड़ी थी। देखिए। निवासराव ने अपनी आशंका व्यक्त की। तीनों घबरा गये। आशंका के बिच्छू ने हृदय पर डंक मार दिया। बाड़े के पिछवाड़े कुछ गड़बड़ी हुई । सभी लोग जल्दी से अपनी मन्त्रणा वार्ता छोड़कर उठ गये और घर के पिछवाड़े की ओर दौड़े। पिछवाड़े का दरवाजा खुला था। तबेले का दरवाजा पूरा खुला था और सबसे आश्चर्य की बात यह भी थी कि पंछी नाम का सबसे तेज और तगड़ा घोड़ा अपनी जगह पर नहीं था। पत्तों की आवाज में बोलने वाले पीपल के पेड़ के नीचे सभी डरे हुए खड़े थे। इतने में ही दहाड़ मारकर रोते हुए निवासराव भीतर से बाहर आये। बापू धोखा हुआ धोखा। भाग गयी आपको बहू भाग गयी। क्या मतलब है रे। मैं सौगन्ध लेकर कहता हूँ। वह छिनाल रंडी शिवाजी की भक्त है। वही घोड़ा लेकर रायगढ़ की ओर भागी होगी अपने षड्यन्त्र का भंडाफोड़ करने के लिए। पिता पुत्र के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। छोटी दाढ़ी और भयानक चेहरे वाले मेहमान भी डर गये। एक के बाद एक पाँच-छह घोड़े तबेले से बाहर निकाले गये। सभी लोग वायुवेग से रायगढ़ की ओर घोड़े दौड़ाने लगे। अन्त में चितदरवाजे की ऊपरी कमान दिखाई पड़ी । हाफती हुई गोदू ने अपना घोड़ा रोक दिया। वह पसीने से तरबतर हो रही थी। घोड़ा भी थककर चूर हो गया था। घोड़े के मुँह से झाग का प्रवाह चालू था। हाथ में लिये भाले की लकड़ी के सहारे वह सीधी हुई और नट-कला दिखाने वाली किसी बाजीगर की कन्या की भाँति आगे की ओर उछलकर नीचे आ गयी। बिना एक क्षण विलम्ब किये वह तीर की तरह दरवाजे की ओर दौड़ी। दरवाजे को जोर-जोर से धक्का मारते हुए वह 14 सम्भाजी
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