गृहलक्ष्मी | Grihlaxmi(1968)
श्रेणी : जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
50
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११ दशन] लीला ॑ ७९8
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लीला--बडी तो म हो गई दह) बाबजी तो उस दिन कह
रहे थे, “लोला अब बड़ों हो रई है ।”
पावंती--झौर भी वड हो जा, तव सब बाते समभाने लगेगी
तब तू मेरो तरह पेड़ मे पानी सचा करना, ५हस्थीके काम
घंघे करना । झब क्रेगीतो तुभे दुःख होगा |
लीला--क्या इसीसे दुख होता हैं ? ता तुमको भी इस काम
से दुख होता होगा ?
पावंती- नदीं ।
लीला--फिर सुभं दुःख क्यों होगा
पाचती- दुःख चाहे न हो, पर पानी लग लग के तू बीमार
हो जायगी ।
इससे एह्िखे लीला बीमार हो गयी थी, सो बीमारी का हाल
वह अच्छी तरह से जानती थी । झब माता की बात सुन कर
उसकी श्रंखं डबडवबा श्रायी । उसने रोनी सी होकर कहा,--“तब
तुमक्तो भी तो पानी लग लग के बीमारी हदो जायगीःः।
माता ने उसके आँसू पेछि कर कहा, “नहीं, इससे मेँ बीमार
नहीं पड़ गी 1
माता की बात सन कर कन्या को अचम्भा हुआ । उसने पूछा
“फिर में कंसे बीमार हो जाउँगी ?”
पार्वती इस “केसे” का उत्तर केसे देती ? तथ मा बेटी दोने
जल सींचने लगीं । माता बडी गगरी में पास के ताल से पानी
भर लाती नौर लोकी, कांड, शाक्र भाजी झादि के पेड़ों में पानी
डालती रह्दी । लीला भी माता की देखा दखी एक लोटे में उसी
भाँति पानी भर भर कर पेड़ों को खींचती रही ।
इस भांति लीला इतनी छोरी ही श्रवस्थासे माता का हाथ
बेरा लेने की शिक्षा पाने लगी । वह दूखरी लड़कियेँ को भांति
भूठे खेल कभी नहीं खेलती । माता के साथ साथ रह कर घर के
सच्चे खेल खेलने ही उसे अधिक रुचते थे । संध्या के समय
चंद्रमा की चांदनी में बैठ कर जब माता चरखे में सूत कातती
तब कन्या उसके पास बेठ कर कपास संवार देती थी । कुछ श्र
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