अध्यात्म - प्रबोध अपरनाम देशनासार | Adhyatm - Prabodh Aparanam Deshanasar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# 32० नमस्सिद्धमू ० -गणिवर्य श्रीमद्‌ देवचन्द्रजी महाराज विरचित अध्यात्म-प्रनोध अपरनाम | देशनासार (स्वोपशवृत्तियुत 2 प्रणम्य श्रीमहावीर सिद्धार्थकुलभास्करम्‌ । दुरवादिद्विपविद्धसकरणे पञ्चानमोपमम्‌ ।१। अनेकान्तानन्तगुणं भिर्वाध॑ 'पारिणामिकम्‌ । 'वस्तुतत्वमनादीनं -स्वात्मघर्ममह श्रये ।२। श्रीदीपचनद्र पाठक चरणाम्बुजसेवनाच्च यल्लच्यम्‌ । गणधर रचित -ूत्र तदनुसारेण वक्ष्यामि 1३। 'स्वात्मोपकृतिहेतो यथार्थ सद्घर्मदेशनामूलम्‌ । 'ससारार्णवत्तार करोम्यह देशनासारम्‌ । ४1 अर्ध-सिद्धार्थनृपति के कुल को प्रकाशित कदने वाले सूय, ओर विभिन्न मतो को अभिनिवेश रखे से कुुक्तियो व कुतकों से वाद कलने चाले, दुवदिरूप गजो को विर्वसं कले के लिए सिह-तुल्य चरम तर्णङ्कर भगवान्‌ महावीर प्रभ को नमस्कार करके अनेकान्तस्वरूप अनन्तगुणमय बाधारहितं पारिणामिक आत्मा मे ही परिगत रहने वाला अत्मा का अनदिकालीन वास्तविक तत्वरूप अपने आत्म-पर्म का मै आश्रय लेता हूँ 1




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