अष्टावक्रगीता का समीक्षात्मक अध्ययन | Ashtavakragiita Ka Samikshatmak Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
209
श्रेणी :
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No Information available about संतोष कुमार मिश्र - Santosh Kumar Mishr
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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नहीं आ सकता। उसे किसी क्रिया से गुजरना पड़ेगा। भक्त ढृदय के लिए प्रेम
मार्ग हे। वरहो योग, हठयोग, साख्य काम नहीं करेगा । भिन्न-भिन्न स्तर के
व्यक्तयो के लिए भिन्न-भिन्न मार्ग। जनक मेँ बोध ग्रहण करने की पात्रता
थी इसलिए अष्टावक्र का प्रभाव हो गया अन्यथा असभव धा। कुछ भी रहा
हो, साख्य पर दिया गया एेसा अनूढा उपदेश, आज तक नहीं दिया गया।
अष्टावक्र जेसा गुरू और जनक जैसा शिष्य खोजना असंभव हे। यह पुस्तक
आत्मज्ञान के मुमुक्षु व्यविक्तर्यो के लिए निश्चय दी एक ऐसी नौका है जिसमें
बैठकर सासारिक बधनों से मुक्त होकर मोक्ष का लाभ प्राप्त किया जा सकता
है जो जीव की उच्चतम स्थिति है।
अष्टावक्र गीता का आरम्भ मुमुक्षु राजा जनक द्वारा पूछे गये
तीन प्रश्नों से होता है कि ज्ञान कैसे होता है? मुक्ति कैसे होती है? तथा
वैराग्य कैसे होता है? सम्पूर्ण आध्यात्म का सार इन तीन प्रश्नो मे समाहित
है। आध्यात्मिक उपलब्धि में वैराग्य का होना एव आसक्ति - त्याग पहली शर्त
है इससे होता है आत्म-ज्ञान एवं आत्म-ज्ञान से ही मुक्ति होती है जो जीव
की सर्वोपरि स्थिति है। जनक के तीन प्रश्नों का समाधान अष्टावक्र ने तीन
वाक्यो में कर दिया एवं उपदेश सुनते - सुनते ही जनक को वहीं
आत्मानुभूति हो गयी । कैसा अनूढा वक्तव्य रहा होगा व जनक की कितनी
पात्रता रही होगी इसका अन्दाजा इससे लगाया जा सकता है। सत्य पर
इतना शुद्धतम् वक्तव्य आज तक कोई नहीं दे पाया यदि इसे अध्यात्म से
निकाल दिया जाय तो आत्मज्ञानी को उस पूर्णं की उपलब्धि कैसे अनुभव
होती। यह जानना ही कठिन हो जाएगा। वेद, पुराण, उपनिषद् भी इसके
सामने फीके नजर आते हैं। कृष्ण की गीता का पात्र अर्जुन विभिन्न प्रकार
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