समयसार प्रवचन भाग ३ | Samaysar Pravachan Bhag-3

Samaysar Pravachan Bhag-3 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीषाजीवाधिकार : गाथा-३४ [ ५ प्रकार जो ज्ञानमे एकाग्र होता है वह प्रत्या्यान है, इससे ज्ञान दी प्रत्या स्यान है ! आत्माको परका व्याग नहीं है, वितु ज्ञानसे वह सव पर है-- एसा जानना ही परवस्तुका त्याग है | ज्ञानम परके त्यागरूप अवस्था दी प्रत्याख्यान है । । मैं निर्दोष हूँ, ज्ञाता हूँ ओर विक्रार होता है वह मेरी श्रवस्थामें होता है, लेकिन वद्द मेरा स्वरूप नहीं है,-ऐसा जानकर ज्ञानमें रहना सो प्रत्या- ख्यान है । ज्ञानमूर्ति चैतन्य स्वभावमें रागरूप विकारका त्याग और ज्ञानकी एका- प्रताको ही श्री तीर्थकरदेव सच्चे प्रत्याल्यानका स्वरूप कहते हैं, उसके अतिरिक्त प्रत्यास्यानका स्वरूप कहीं बाहामें नहीं होता । सम्यक्दशन हुआ तबसे भगवान कहा है, मानसे भगवान कहा है, एक-दो भवमें मोक्ष जाता है इसलिये भगवान कहा है, भविष्यका मगवान है इसलिये भगवान कडा है । किसी रक--मिलारीसे कहा जाये करि-तु मगवान है, तो वह करेगा कि--भाई साहब ¦ सुकसे भगवान मत कष्टो ! उसुक्रे हृदयपे तो जो धनवान- पैसेवाले सेठ दै उनका माहास्य है | जव कोई सेठ धर श्राये तो कता है कि-आओ सेठ साहत्, पघारो ! किन्तु सर्वश्रेष्ठ जो मगवान श्यात्मा है उसकी जसि श्रद्धा इई वही सच्चा श्रेष्ठ ( सेठ ) है, उसे श्याचार्यदेवने मगवान कषा दै । सम्यक्दशन ओर सम्यनज्ञान हा वहाँ अन्य द्रन्यके स्वभावसे होनेवाल न्य समस्त परमार्वोका ज्ञाता-दष्टा रता हे । अन्य समस्त राग देष, पुरय हो अयव्रा पाप हयो, वतक परिणाम हयो या ्रतरतके, बधका विकल्प हो या मोच्तका,-वह सत्र परभाव है, वह सब अन्य वस्तुमें डाल दिया है । एक श्रो अक्रेला भगवान आत्मा ओर दूसरी योर यद समस्त जद्का दल कहा है । पुरुषार्थकी निवैलताको मी गौण करके जङका दल क है |




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