दशकोण | DashKon
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
424
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्ना गये। हमे ट्रिंपस्ट के वन्दरगाह से 'गेटी' नामक जहाज द्वारा सफर
करने का श्रादेश मिला । एलिक का कहना था कि 'गेटी' की गणना
झटलादटिक महासागर की यात्रा में लगे सर्वोत्तम जहाजो में है।
दस प्रकार सिर से पर तक सजकर हम तीनों ४ जनवरी, १६०७
को रवाना हुए । सामान में हमारे साथ चार चमड़े के थेले, दो वेंत की
टोकरि्यां श्रौर खाने के चार वडे-वडे वण्डल ये । माता-पिता दोनो छोटे
वच्चो श्रौर दो कुत्तो को लिये हमारे पीछे दूनरी गाडीमे सवार हुए 1
स्टेदान पहुंचकर पिताजी दपचाप एक वेच पर जावे) हूमचलोग
एक सुदूर श्रौर विचित्र देश की यात्रा पर जाने को थे, परन्तु वह हमसे
कुछ वोले नहीं । हम सोच रहे थे कि क्या कारण है। इतने ही में
श्रकस्मातु उठकर वह हमारे पास भरा गये श्रौर वोले, “बेटों ! मुझे
पता हैं कि बहुत दिनो से तुम मेरी त्तम्वाकू चुराते रहे हो श्रौर घर के
पीछे उसकी सिंगरटें बनाकर पीते रहे हो 1”
हम दोनो घवराकर उरु खडे हुए । सोचा, क्या पिता के प्रसिद्ध
व्यास्यानों का यहीं सुभ्वसर है, वया कहना चाहते हैं । इतने ही में
उन्होंने श्रपनी जेय से सिगरेट की दो डिब्सियाँ निकालो, गौर एक-एक
मु्के तथा दवे को देकर योले, “तुम दोनो के लिए मैंने सिगरेट की एक-
एक डिव्वी सरीदी है, श्राप्मो वैठवर हम सब पिये ।”'
मैं भूलता नहीं कि मेरी माता की मुखमुद्दा कितनी चमत्कृत हुई,
जव उन्होंने श्पने दो बड़े चेटो को झपने पिता के सामने वैठफर सिगरेट
पीते देखा । जो पित्ता कहना चाहते थे, सो हम समझ नये । उन्होंने मान
लिया था फि हम चयस्क हो गये हैं ।
यपाममय रेलगाड़ी आ गई, श्र पिता के सकेत का महत्त्व भली
प्रकार समभने के पहले ही हम रवाना हो गये । यो हमारी महत्त्वपुर्ण
साहसिक याम्ना प्रारम्भ हुई ।
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