श्री परमात्मा मार्ग दर्शक | Shri Pramatmarg Darshak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
500
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३)
सेन ठोग अन्य मतावठंब्वी होते जारहे हैं; अतः आप जेसे महात्मा की
कृपा हो जायतो एक नया क्षेत्र खुल जाय एवं अत्यंत उपकार हो !
चतुर्मास पूण होते ही महाराज श्रीने हैद्रावाद की तरफ विहार
कर दिया । सं० १९६२ का चतुर्मास इंगतपुरी में किया । यहां के तथा
घोटी ग्राम के श्रावको ने महाराजश्री कृत “ धमे-तत्व संग्रह ग्रन्थ
की १५०० प्रतिय छपरा कर अमूर्य वितरण की । तदनंतर बीजापुर
( ओरंगाबाद ) अये । यहां के सुश्रावक भिखुजी संचेती ने ^“ धमे-तत्व
संग्रह का गुजराती अनुवाद १२०० प्रतियों द्वारा अमूल्य वितरण किया ।
इस प्रकार ओरंगावाद जारने होति हए वथा शीतोष्ण परिषद
सहते हए सं० १९६३ चैत्र शुद्धा प्रतिपदा फो देद्रावाद ( अछवाड़ )
पारे । चतुर्मास के छिपे चार कमान में कोठी ( बंगला ) में रहे जो कि
लाठा नेतरामजी रामनरायणजी ने दी थी ।
हेद्राबाद के श्री संघ ने महाराज श्री के ब्याख्यानों का शुभ
लाभ उठाया । महाराज श्री ने स्याद्वाद के गहन रहस्यों का जनसाधारण
की भाषा में अन्युच्यम ढंग से उद्घाटन किया । तत्प्रभावस्वरूप अनेक
अनेन जेन, तथा दशिथिल धर्मी दढ़ धर्मी चने । ज्यादा क्या कहें राजा
वहादुर ठाला सुखदेवसहायजी ज्वाछाप्रमादजी जैसे श्रावक रत्न भी प्रसिद्ध
दानवीर तथा घम प्रभावक चने तथा अनेक शाख्र प्रवीणा, दुष्कर तप करने
चाली, सौ भाग्यावस्था में ही चारों स्कंध का पाठन करने वाली और सब जनों
को सुख शांति पहुंचाने की भावना रखने चाली युलाव वाई श्राविका-रत्न
चनी -ये दोनों रत्न जन समाज का मुखोज्चल करने वाले सिद्ध हुए।
तपस्वीराज श्री केवर कपिजी महाराज के शिष्य श्री सुखा
ऋषि जी महाराज आश्विन मास से अवम्थ रहे तथा फाल्गुण में आपका
स्वगं वास होगया । तदनंतरं ग्रीप्म ऋतु के आरभ हो जाने से विहार नदीं
हो सका । महाराज श्री का दूसरा चौमासा भी लाला जी के आग्रह से
हेदराबाद मे ही हुआ । पश्चाद् तपस्वीराज जी का स्वास्थ्य एक द्म गिर
गया, तथा इद्धावस्था ने हृदरावाद नहीं छोड़ने दिया-इस प्रकार नव
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