सम्यक्त्वपराक्रम | Samyaktvaparakram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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, (१) पचाव यसे ~ =+ --- - -- ~ नादंखरणिस्स नाण नरेण चिना च हांत्ति चरणगुण अगुशिस्स नस्थि सोक्खो नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं ॥ श्र्थात-जिसे सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हुआ उसे सस्यग्त्नान भी प्राप्त नही होना और सम्यश्ञान के बिना सम्यक्चारित्र गुण नहीं, प्राप्त ठो सकता । सस्यकुचारित्र के श्रभाव में मुक्ति नहीं मिलती छर सूक्ति मिते विना निवा की प्राप्नि नही हो सकती । हस कंश्रन से यहाँ प्रश्न उपस्थित होता है किं पहल सम्यग्‌ ज्ञान उत्पन्न होता है या सम्यग्देशन ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि निश्चय में तो सम्पस्ज्ञान श्र सम्यग्दशन की प्राप्ति एक ही साथ होती है परन्तु व्यवहार में बोलने के क्रम से पहले सम्यग्ज्ञान बोला जता हैं । वास्तव में तो दोनो एक ही साथ उत्पन्न होते हे उदाह्‌गणाथ-- सूर्योदय होने पर प्रकाश पले होता है या ताप ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि यद्यपि प्रकाश अर प्रताप दोनो एक साथ ही सूय में से निकलते, है क्योकि जिन क्रिखो से अकाश निकलता है उन्हीं किरणों से प्रताप निकलता है । फिर भी बोलने से पहल प्रकाश और फिर प्रताप बोलना जाता है उसी प्रकार जव ज्ञानावरणीय कर्म का ज्ञयोपशम होता दैः ऋौर सिध्यात्वमोहनीय का उदय होता हैं सब भिध्याज्ञान उत्पन्न होता है) परन्तु जव ज्ञानाजरणीय कं त्षयोपश्म के साथ सिथ्य्रास्रमोहनीय कां मी क्तयो- पशस, होता है तव सम्यग्नान ओर सम्यग्दर्शन एक दी साथ उत्पन्न डोत्ते ह । सिफ बोलने के करप मे पहले संम्यग्ान श्रौर फिर सम्यग्‌- दशेन बोला जाता दै! उस प्रकार सस्यज्ञान, सम्यण्दशे् तथा सम्यक्चारित्र भ्राप्त होने से ष्ठी मोच मिलता है 1 कषा जा सकता ई कि सम्यक्चारित्र तों संयम धारण करने से दी प्राप्त हो सकता है। परन्तु सम्यग्लान, सम्यग्दशन और




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