श्री श्री चैतन्य - चरितावली | Shri Shri Chetanya - Charitavali Bhag -2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
386
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राक्कघन १८५.
घूनदा रटता है ? उसके पास जानेके लिये सात पटुरेवालासे अनुमति छेनी
पड़ती दि; तब कहीं जाझर किसी भाग्वदयालीको राजाके दर्मन दते ६, नदी तो
ऐस-बैनेंफो तो पहले पटरेचाला पुरुष दी फटकार देता है। अब जिस आदर्मीने
पटे कमी राजाफों देखा तो हैं नदी और राजाकों देखनेकी उसकी प्रबल
रच्छा है; फिन्तु असली राजातक उसकी पहुँच नदीः तेवर वह चार यनेका
टिकट लेकर नाव्यशालामि चला जाता हैं और वहाँ राजाका अमिनय करने-
चाल बनावरी राजाक्रो रेखनेपर उसकी उच्छाकी कुकुर पूर्तिं हों जाती
है । वपि नाय्यद्चाटमे उसे असली राजकरे दर्गन नही हुए» किन्तु तो भी:
उस चनाचटी राजाकों देखकर चढ़ राजाके वेष-भूपा» वस्त्र-आमूषणः सुकुट-
कुण्डल अर रोव-दावर तथा प्रभावके विषयमे कुछ करपना कर सकता दै |
उस बनावरी राजाके देखनेसे चद अनुमान टगा सकता £ किं असली
राजा शायद ऐसा होगा ।
इसी प्रका१«,.* 1 सुस्तकके पढनेंले पाठकाकों प्रेमकी प्राप्ति हो सके»
यह् तो सम्भव नदीक्^न्वु इखके द्वारा पाटक प्रेमिर्योकी दगाका कुरु-कुछ
अनुमान यदय टगा सकते ६ । उन्दै इख पुस्तकके पढ़नेसे पता चल
जायगा कि पेममें कैसी मस्ती दै कैसी तन्मयता है, कैसी विकट्ता है ।
प्रेम रसमें छके हुए; प्रेमीकी कैसी अद्भुत दशा दो जाती दे; उसके कैसे
छोक-बाह्म आत्वरण हो जाते हैं; वदद किस प्रकार ससारी छोगोंकी कुछ भी
परवा न करके पागर्ययेकी तरह त्य करने ठ्गता है ! इन समी वा्तोका
दिण्दर्गन पाठकोको इस पुस्तकके द्वारा हो सकेगा ।
अध्यापकीका अन्त होनेके वाद प्रका सम्पूर्णं जीवन प्रेममय ही
था ! अदाः उस मू्तिके सरणमात्रेसे हृदयमे कितना मारी अनन्द प्राप्त
होता है ? पाठक । प्रेमे त्य करते हुए गौराज्गका एकं मनो्र-खा चित्र
अपने हदय-पटलपर अद्भिते तो करं ।
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