श्री श्री चैतन्य - चरितावली | Shri Shri Chetanya - Charitavali Bhag -2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shri Shri Chetanya - Charitavali Bhag -2 by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

Add Infomation AboutShri Prabhudutt Brahmachari

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्राक्कघन १८५. घूनदा रटता है ? उसके पास जानेके लिये सात पटुरेवालासे अनुमति छेनी पड़ती दि; तब कहीं जाझर किसी भाग्वदयालीको राजाके दर्मन दते ६, नदी तो ऐस-बैनेंफो तो पहले पटरेचाला पुरुष दी फटकार देता है। अब जिस आदर्मीने पटे कमी राजाफों देखा तो हैं नदी और राजाकों देखनेकी उसकी प्रबल रच्छा है; फिन्तु असली राजातक उसकी पहुँच नदीः तेवर वह चार यनेका टिकट लेकर नाव्यशालामि चला जाता हैं और वहाँ राजाका अमिनय करने- चाल बनावरी राजाक्रो रेखनेपर उसकी उच्छाकी कुकुर पूर्तिं हों जाती है । वपि नाय्यद्चाटमे उसे असली राजकरे दर्गन नही हुए» किन्तु तो भी: उस चनाचटी राजाकों देखकर चढ़ राजाके वेष-भूपा» वस्त्र-आमूषणः सुकुट- कुण्डल अर रोव-दावर तथा प्रभावके विषयमे कुछ करपना कर सकता दै | उस बनावरी राजाके देखनेसे चद अनुमान टगा सकता £ किं असली राजा शायद ऐसा होगा । इसी प्रका१«,.* 1 सुस्तकके पढनेंले पाठकाकों प्रेमकी प्राप्ति हो सके» यह्‌ तो सम्भव नदीक्^न्वु इखके द्वारा पाटक प्रेमिर्योकी दगाका कुरु-कुछ अनुमान यदय टगा सकते ६ । उन्दै इख पुस्तकके पढ़नेसे पता चल जायगा कि पेममें कैसी मस्ती दै कैसी तन्मयता है, कैसी विकट्ता है । प्रेम रसमें छके हुए; प्रेमीकी कैसी अद्भुत दशा दो जाती दे; उसके कैसे छोक-बाह्म आत्वरण हो जाते हैं; वदद किस प्रकार ससारी छोगोंकी कुछ भी परवा न करके पागर्ययेकी तरह त्य करने ठ्गता है ! इन समी वा्तोका दिण्दर्गन पाठकोको इस पुस्तकके द्वारा हो सकेगा । अध्यापकीका अन्त होनेके वाद प्रका सम्पूर्णं जीवन प्रेममय ही था ! अदाः उस मू्तिके सरणमात्रेसे हृदयमे कितना मारी अनन्द प्राप्त होता है ? पाठक । प्रेमे त्य करते हुए गौराज्गका एकं मनो्र-खा चित्र अपने हदय-पटलपर अद्भिते तो करं ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now