विनोबाके विचार | Vinoba Ke Vichar

1396 Vinoba Ke Vichar (1950) by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कृष्ण-भक्तिका रोग ६ बुरा जो देखन में चला चुरा न दीखा कोय ) जो घट खोजा आपना मुसा चुरा न कोय॥ * दूसरी दवा है मौन । पहली दवा दूसरेके दे।प दिखे दी नहीं, इसलिए, है। इृष्टिदोपसे दोप दिखनेपर यह दूसरी दवा श्रचूक काम करती है | इससे मन मीतर-द्दी-मीतर तड़फड़ायेगा । दोन्वार दिन नोंद भी खराब -जायगी } पर श्राखिस्मै थककर मन शांत हो जायगा । तानाजीकें खेत -रहनेपर मावले पीठ दिखा देंगे ऐसे रग - दिखाई पड़ने लगे । तब जिस र्स्सीकी मददसे वह गदपर चद थे ओर जिसकी मददसे श्वर वद -उतरनेका परयरन करनेवाले थ वह रस्पी दी सूर्राजीने काट डाली | धह रस्यी तो मैने कमीकी काट दी है” सर्वाजीके इस एक वाक्यने लोगेमि 'निराशाकी वीरभी पेदाकरदीश्रोर गढ़ सुर हो गया । रस्सो काट डालने- का त्वक्ञान बहुत ही सहसवक्रा ह । इसपर अलगसे लिखनेकी जरूरत है! इस वक्त वो इतनेसे दी श्रभिप्राय है कि मौन रस्सी काट देने जसा है। प्या ते दूसरेके दोष देखना यूल जा; नहीं तो बैठकर तड़कड़ाता रह, मंन पर यह नौवत श्रा जादी है 1 श्योर वह हुग्रा नहीं कि सारा रास्ता सीधा हो जाता है । कारण, जिसको जीना है उसके लिए बहुत समयतक चड़- फड़ाते वैंठना सुविधाजनक नहीं होता । तीसरी दवा है. कर्मयोगर्म मग्न हो रहना । जैसे आज यूत कातना 'केला ही ऐसा उद्योग है कि छाटे-वड़े सबका काफी हो सकता है, येतते ही कर्मयोग एक दी ऐसा योग दै जिप्को शर्वसाघारणुके लिए वे-खटके . सिफा- रिश को जा सकती है । क्रिंवहुना; सूरत कावना ही आजका कर्म-योग है । सूत कातनेका कमे-योग स्वीकार किया कि लोक-निंदाकों मथते रहने- की फुर्सत ही नहीं रहती । जैसे किसान त्रन्तके दाने-दानेकी श्रसली कीमत सममता दै, चेतसे ही सूत कातने वालेको एक-एक क्के महक पता चलता है। “णम मो खाल न जाने दे” समर्थकी यड चना अथवा (कणां मौ व्यथ न खो नारदका यह नियम क्या कहता है, -यह सुत कातते हुए, अतसः सममे राता है | क्मयोगका समर्य




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