विनोबाके विचार | Vinoba Ke Vichar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कृष्ण-भक्तिका रोग ६
बुरा जो देखन में चला चुरा न दीखा कोय )
जो घट खोजा आपना मुसा चुरा न कोय॥
* दूसरी दवा है मौन । पहली दवा दूसरेके दे।प दिखे दी नहीं, इसलिए,
है। इृष्टिदोपसे दोप दिखनेपर यह दूसरी दवा श्रचूक काम करती है |
इससे मन मीतर-द्दी-मीतर तड़फड़ायेगा । दोन्वार दिन नोंद भी खराब
-जायगी } पर श्राखिस्मै थककर मन शांत हो जायगा । तानाजीकें खेत
-रहनेपर मावले पीठ दिखा देंगे ऐसे रग - दिखाई पड़ने लगे । तब जिस
र्स्सीकी मददसे वह गदपर चद थे ओर जिसकी मददसे श्वर वद
-उतरनेका परयरन करनेवाले थ वह रस्पी दी सूर्राजीने काट डाली | धह
रस्यी तो मैने कमीकी काट दी है” सर्वाजीके इस एक वाक्यने लोगेमि
'निराशाकी वीरभी पेदाकरदीश्रोर गढ़ सुर हो गया । रस्सो काट डालने-
का त्वक्ञान बहुत ही सहसवक्रा ह । इसपर अलगसे लिखनेकी जरूरत
है! इस वक्त वो इतनेसे दी श्रभिप्राय है कि मौन रस्सी काट देने जसा
है। प्या ते दूसरेके दोष देखना यूल जा; नहीं तो बैठकर तड़कड़ाता रह,
मंन पर यह नौवत श्रा जादी है 1 श्योर वह हुग्रा नहीं कि सारा रास्ता सीधा
हो जाता है । कारण, जिसको जीना है उसके लिए बहुत समयतक चड़-
फड़ाते वैंठना सुविधाजनक नहीं होता ।
तीसरी दवा है. कर्मयोगर्म मग्न हो रहना । जैसे आज यूत कातना
'केला ही ऐसा उद्योग है कि छाटे-वड़े सबका काफी हो सकता है, येतते ही
कर्मयोग एक दी ऐसा योग दै जिप्को शर्वसाघारणुके लिए वे-खटके . सिफा-
रिश को जा सकती है । क्रिंवहुना; सूरत कावना ही आजका कर्म-योग है ।
सूत कातनेका कमे-योग स्वीकार किया कि लोक-निंदाकों मथते रहने-
की फुर्सत ही नहीं रहती । जैसे किसान त्रन्तके दाने-दानेकी श्रसली कीमत
सममता दै, चेतसे ही सूत कातने वालेको एक-एक क्के महक पता
चलता है। “णम मो खाल न जाने दे” समर्थकी यड चना
अथवा (कणां मौ व्यथ न खो नारदका यह नियम क्या कहता है,
-यह सुत कातते हुए, अतसः सममे राता है | क्मयोगका समर्य
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