श्री कृष्णामृतं | shree krishanamratam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीमत्परमर्हसामृतानन्दगिरि विरचितम् । ध.
मत लग जाय किसीसों जियरादा इ दहं यह कैसा रोग ॥
धर वेचेनी' छन्य दिखे है योगलिये भी दूनों ताप ।
वन जायें तो: रोरोकाटें तडफतहें जहिं वसते लोग ॥
नदिं मरना नहिं जीना मावे, सकल उपाय व्यर्थं हीं होत ।
वैद्य सहाय न यामे कोई, विष छागे सव जगके भोग ॥
रेन दिवस इक समहीं वीते, कते काको श्चुत् तट नींद ।
आत्मविया विना बुलाये, आवत चरे न कड उद्योग ॥
मिं प्राणपति दूनो दोवे, तासां हे वियोग अधिकान ।
अस्त या पिमा न कोहं है नहि होग ।॥२३॥
हा
ज्ञान प्रेम उन्माद करद ऊच नीच कं चाल ॥
अगत बुरा न मानियें मनकी माषे वार ॥ २४ ॥
श्रुति-जग-नियम न रदसकैः रदे न मतिका रोग ॥
प्रेम जां सुख पगधरे जानत प्रेमी लोग ॥ २५ ॥
छद् ।
हाइ कहें अब भला कवनसों कैसे सोच करो ।
लखो निहारों तनिक कहो जी दूरी कठिन जरो ॥
क्या जानें को हेतु ददीलो कठिन छुकठिन परा है ।
अब जौजो मम नयन आप्रेसों भीजत नादिं गरो ॥
च्या रुखनो यदह रो रहो दढ अमर हं अमर भयो दे ।
छखिये निजखभाव जिहिं अवरं दाग न कबहु परो ॥
जौ लखहो यद पापिन पापी जरे न मरे न जावि ।
तौ किर वेदकथित कव जैहै खदुखभावक्षगरो ॥
सुनिये दै अव कान प्राण मस प्ेमभरे दिरदेके ।
अग्रत पक्ष न रघु बुध साक्षी निगम इं पश्च भरो ॥ २६॥
कवतक डरे श्रदल-प्रसतासा कबतक दरद् सहं ।
लखो न रखते भी जव हम किम नहिं दुखसिन्धु वदं ॥
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