वेदान्तसार | Veidaantasaara
श्रेणी : काव्य / Poetry, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संस्कतटीका-भाषाटीकासमेत॑ ।. (१९४)
क
दान्तशाखके वक्यामं विश्वास करना भ्रद्धा कहातीह॥ १७॥
सुमुष्षुत्वं मोक्षेच्छा ॥ १८ ॥
(भाव्टी) मैक्षमे जो दच्छा होती है उसको
मुम॒श्चत्व कहते ॥ १८ ॥
एवम्भतः प्रमाताऽधिकारी । ^ शान्तो दान्तः ` `
इत्यादिश्रुतेः ॥ तथा चोक्तम्--“प्रशान्तचित्ताय
नितेन्द्ियाय प्रक्षीणदोषाय यथोक्तकारिणे ॥
गुणान्वितायानुगताय सवेदा प्रदेयमेतत्सकटं
मु॒क्षवे” इति ॥ १९॥
( सं°्टी° ) तथाच पर्वक्तसकटविशेषणविरिष्टः प्रमात-
धिकारीत्यथः।अस्मि्थं रतिं प्रमाणयति शात इति।॥ १९
` (भाग्दी° ) जो पर्षाक्तं साधनचतुष्टयुक्त होताहि उ-
सी को वेदान्तशा्रमें अधिकारी कहते ह । इस विषयमे श्र
ति ओर स्मतिका परमाण द्खिति ईहै-“नि्रका चित्त शान्त
हो, ओर जितेन्द्रिय हो,भोर भरम विप्रिप्सादि दोषरहित,
आज्ञाकारी, गुणवान्, सवेदा अनुगत,ओर मोक्षकी इच्छा
करनेवाला हो एसे शिष्यको सव विषयका उपदेश करना
चाहिये” । १९॥ ` ॥
- विषयो जीवन्रहमक्यं शुद्धचैतन्यं प्रमेयम् ।
: ततेव वेदान्तानां तात्पय्योत् ॥ २० ॥
` (सं °टी> ) यथोदेशं विषयं निरूपयति! विषय इति।
अवियाध्यारोपितसवेज्ञत्वर्किचिज्जत्वादिविरुदधरम्मपरित्यागे
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