वेदान्तसार | Veidaantasaara

Veidaantasaara by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संस्कतटीका-भाषाटीकासमेत॑ ।. (१९४) क दान्तशाखके वक्यामं विश्वास करना भ्रद्धा कहातीह॥ १७॥ सुमुष्षुत्वं मोक्षेच्छा ॥ १८ ॥ (भाव्टी) मैक्षमे जो दच्छा होती है उसको मुम॒श्चत्व कहते ॥ १८ ॥ एवम्भतः प्रमाताऽधिकारी । ^ शान्तो दान्तः ` ` इत्यादिश्रुतेः ॥ तथा चोक्तम्‌--“प्रशान्तचित्ताय नितेन्द्ियाय प्रक्षीणदोषाय यथोक्तकारिणे ॥ गुणान्वितायानुगताय सवेदा प्रदेयमेतत्सकटं मु॒क्षवे” इति ॥ १९॥ ( सं°्टी° ) तथाच पर्वक्तसकटविशेषणविरिष्टः प्रमात- धिकारीत्यथः।अस्मि्थं रतिं प्रमाणयति शात इति।॥ १९ ` (भाग्दी° ) जो पर्षाक्तं साधनचतुष्टयुक्त होताहि उ- सी को वेदान्तशा्रमें अधिकारी कहते ह । इस विषयमे श्र ति ओर स्मतिका परमाण द्खिति ईहै-“नि्रका चित्त शान्त हो, ओर जितेन्द्रिय हो,भोर भरम विप्रिप्सादि दोषरहित, आज्ञाकारी, गुणवान्‌, सवेदा अनुगत,ओर मोक्षकी इच्छा करनेवाला हो एसे शिष्यको सव विषयका उपदेश करना चाहिये” । १९॥ ` ॥ - विषयो जीवन्रहमक्यं शुद्धचैतन्यं प्रमेयम्‌ । : ततेव वेदान्तानां तात्पय्योत्‌ ॥ २० ॥ ` (सं °टी> ) यथोदेशं विषयं निरूपयति! विषय इति। अवियाध्यारोपितसवेज्ञत्वर्किचिज्जत्वादिविरुदधरम्मपरित्यागे




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