यूरोप के झरोके में | Europe Ke Jhakore Me
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
314
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूलते-भटकते ७
उसी पर बैठ बच्चे को दूध पिलाने लगी । इसके बाद जैसे कस कर श्रालू-
भरे किसी बोरे के फूट जाने पर उसके भीतर के बड़े-छोटे आलू बाहर
निकलने लगते हैं, उसी प्रकार गाड़ी के भीतर से बटे, बचे, नौजवान, खी,
पुरुष बाहर निकलने लगे। जैसा प्रायः हुआ करता है, उनके पड़ाव डालते
ही वहाँ पर उनका झपना एक विशेष प्रकार का बाजार-सा लगने लगा ।
ये जिप्सी भारत के झनेक भागों में पाये जाने वाले मगहिया डोम
श्रथवा बदुदू जातियों की तरह अपना सारा जीवन/गाड़ियों पर ही बिताया
करते हैं । ये चोरी, ठगी अथवा भित्षावृत्ति से अपना निर्वाह किया करते
हैं। इनके जीवन की श्रावश्यकताएँ निश्चित नहीं होतीं बल्कि जब जैसा
हाथ लग गया, उसीके अनुसार बढ़ती-घटती रहती हैं ।
इसी कारण उनके लिंबास अपने निजी ढंग के ही थे । कितने
बुड्ढों के पाँवों में ख्रियों की ऊँची एडी वाली जूतियाँ श्र कितनी
चयो के पोवों में पुरुषों के बूट जूते थे। श्रौर कितनों ही के एक पाँव में
पुरुष का श्र दूसरे में स्त्री का जूता था ! उनके पाजामे, कोट श्रादि
रंग-बिरंग के थे । श्रगर एक पॉव में हरे रंग का कपड़ा, तो दूसरे में
काते, सफेद या किसी चितकवरे रंग का ।
गाड़ी से उतर कर एक जिप्सी भीख मॉगने के लिये जाने से पहले
अपने बेहले का साज-बाज ठीक करने लगा । नाले के पास, जहाँ से बड़ी
बदबू श्रा रही थी, बूढ़े श्राग जला कर भोजन पकाने की तैयारी करने
लगे । कु खियाँ अपने लहेँगो पर कई प्रकार के अन्न बिछा कर साफ़
करने लगी । दूसरी, जिनकी किशोरावस्था थी, शहर में जाने पर सरलता
से लोगों का ध्यान अपनी ओर झाक्षित कर सके--इसके लिये, तरह-
तरह के बनाव-सिगार करने लगी ।
-खानावदोशों के दोस्त खानाबदोश ही हो सकते हैं । मासंइई में
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