सूनी घाटी का गीत | Sooni Ghati Ka Geet

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sooni Ghati Ka Geet by प्रभात रंजन - Prabhat Ranjan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about प्रभात रंजन - Prabhat Ranjan

Add Infomation AboutPrabhat Ranjan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जाड़े की भोर का शुक्र जाड कौ सदे, ठिटुरी भोर का शुक, राख की लहराती सी चादरों पर, रिमटिमाता नन्हा सा अंगार... वर्फ़ीली कंद्रात्रां मं, हिमप्रिया के साथ, बिता रात, उठा; चला, गुल्लार्बी नयन मींजता, मद्धम-मद्धम पवन... देखा, गत रात्रि कंद्रात्रों वाला टिमाटिमाता सा वह चिराग... फिर चकस्मात्‌ मुस्कुरा, कि श्रे यहं कैमे- फक मार करः बुश्ा दिया |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now