विनोबा के पत्र | Vinoba Ke Patra

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Vinoba Ke Patra by रामकृष्ण बजाज - Ramkrishn Bajaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१. जसनालाल बजाज के नाम १ : सत्याग्रहाश्म, वर्धा, १६-६-२८ श्री जमनालालजी, सावरमती-बाश्रम मं ब्रह्मचयं के सवध म जो नियम बने है, उस विषय मे यहा भी सहज भाव से चर्चा होती रहती ह । यहा भी वही नियम रहे, ऐसा सहज ही लगता हैं तथा सस्था के व व्यक्ति के तेज की रक्षा भी उसी- में है, यह स्पष्ट है । नियम बनाने से कुछ लोग चले जायगे, यह भी दिखाई देता है । तथापि नियमों का पालन करने में ही कल्याण होनेवाला हे, इसलिए नियम होना ही चाहिए, ऐसा लगता हूं । आपका भी विचार जानने की इच्छा ह 1 आपकी राय जानने में आपकी स्थिति ज़रा कठिन हो जाती है । पर विद्यालय की दृष्टि से आपके विचार जानना आवद्यक भी है । आपका स्वास्थ्य अब कैसा है * यहा कव आनें का इरादा ह ? विनोवा के प्रणाम वर्धा, ७-८-३२ श्री जमनालाख्जी, वहा से यहा माया तवसे मापका भमेडेट' तोडने का परसग नही आया । मेरी तवीयत वहा जैसी ही ठीक हं । काम सदा की भाति चल रहा द । भिन्न-भिन्न आधमों की कल्पना साथियों को पसद आई हैं पर अमल मे खाने मे काफी अड़चने माने की आका ह । फिकहार तो नीचे लिखे अनुसार योजना कर रहा हू । १ पुलगाव--मनोहरजी २. देवली--मोघेंजी (केशवराव )




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