आर्य्य धर्म प्रकाश | Aaryy Dharm Prakash

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Aaryy Dharm Prakash by अगस्त्य सन्यासी - Agasty Sanyasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ ) आत्मा वै जायते पुत्रः ॥ यदि सत्यु क पश्चात्‌ मनुष्य क जीवात्पा शेप रदती है तब तो उसका पुनजन्म अथात दम शदीर धारण करना आवश्य कीय ही है संसार में सर्वत्र यह नियम काम करता दिखाई देता दे कि जेमी कोइ चस्तु होती है वह अपने समान दूसरी वस्तु को आकपेण करती रहती ई, मनुष्य के अन्दर बहुत नी पशु बृत्तियां हैं, जिस पुरुष ने पथ ब्रत्तियों पर विजप प्राप्त कर है उसका तो पुनजेन्म होता दी नहीं पर जो कोई नहीं प्राप्ठ कर सकता उस में मृत्यु के समग्र जो पशथुदत्ति अधिक होगी सृत्युके पश्चात वह स्वयं उम जगह आकर्षित हआ चरा जायगा जहां उमी पञ्यद्त्ति का विकाश्च हो रहा होगा, निय बही दै जो उपर बताया गया है अथौत्‌ ममान को आकपेण करना, आत्मा का अपने बन्धनो को काट सकृना नैः रनः दी हो सकता है ओर इसके वापे मेकृड जन्म होने आवइयक हैं इसी के किए उपनिपद्‌ कार छिवते हें ओर गीता में भी ठिखा दे--




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