श्रीराम कृष्ण लीलामृत भाग - 1 | Shriram Krishn Lilamrit Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
460
श्रेणी :
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No Information available about पण्डित द्वारिकानाथ तिवारी - Pandit Dvarikanath Tivari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्ररताबना प्र
तरह नहीं मिलता है; परन्तु इसीमें तो उनके अवतार की अपूवेता हे । श्रीराम-
कृष्ण का चरित्र एवं उनका उपदेश संसार के भावी युगघम का सूत्रमय अवतार
हे । भविष्य में केवल उसका विस्तार तथा स्पष्टीकरण होना शेष हे । ° जितने
मत उतने मार्ग, * सभी मागे एक ही इंदवर की ओर ले जाते हैं, ”--इस
युगधर्मं का जो अनुसरण करेगा वह अपने ही धमे में रहकर अन्य धघ्मावल-
म्बियो के सम्बन्ध मे विदवबन्धुत्व का अनुभव कर सकेगा । भिन्नता मं अभि-
न्नता किस प्रकार होती है, इसका उन्हें अनभव हो जाता दे । हिन्दू घ्म के
भिन्न भिन्न सम्प्रदायां के अनुस्तार साधना करके उनमें सिद्धि प्राप्तकर भगवान्
श्रीरामकृष्ण विधिनिषेधातीत परमदहैसावस्था में प्रतिष्ठित हुए थे । इसके परचात्
उन्होने इस्छाम, ईसाई आदि धम की दौकिक दीक्षा लेकर उनकी यथाविधि
साधना कर इस सत्य की साक्षात् उपलब्धि कर ली थी कि सभी धमे उस एक
ही भद्ितीय परमेरवर की ओर ले जाते हैं । यद्दी कारण हे कि विभिन्न धमोव-
लम्बियों को श्रीरामकृष्ण में स्वघर्मीय आदश गुरु की प्राप्ति हो जाती हे । इस
प्रकार अपने अपने विशिष्ट घ्म को नष्ट न करके परस्पर एक दूसरे में भ्रातृभाव
का अनुभव करना उन्होंने हमें प्रत्यक्ष दिखा दिया । इसीमें उनके अवतारत्व की
अपूवता हैं । उन्होंने इस प्रकार अपने आचरण द्वारा प्रत्यक्ष सभी धर्मो का
समन्वय कर दिखाया है जो बात अन्य किन्हीं अवतारों में नहीं दिखाइ देती ।
इस बात को सिद्ध करने के लिए उन्हें हरएक धमे की लौकिक दीक्षा लेना ही
आवश्यक था; क्यों कि उसके बिना लोग उन्हें प्रत्यक्ष अपने निजी धरम का
नद्दीं समझ सकते थे । इंस्वर-दशन के उपरान्त भिन्न मिन्न घर्मो की प्रत्यक्ष
दीक्षा लेकर प्रत्येक धर्म में बताई हुई साधना करने का उन्होंने जो प्रचण्ड
प्रयत्न किया उसका इसी दृष्टि से विचार करने पर हमारे ्रदन का समाधान
हो जाता हैं।
६. इस प्रकार संसार को भावी युगधघमं का सूत्रपाठ सिखाने के लिए
भगवान् का जो यह अलौकिक चरित्र हुआ उसका परिशीलन करने से हमें जो
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