गर्जन | Garjan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भगवत शरण उपाध्याय - Bhagwat Sharan Upadhyay
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“गजेन, निरंतर गजेन ।»
(तुमुल नाद्, सिंघु का गंभीर गजेन । '
जहाँ आज पुरी की बस्ती है उससे कुछ उत्तर हटकर सिंधु
को मोड़ पर एक विशाल तटवर्ती वन था । उस वन के जल-
लप्र दक्तिण भाग में विक्रांत जलदस्यु शूलपाणि निवास करता
था। आंध्र सिमुक सातवाहन इसी समय मौर्यों की दुबंलता
से शक्ति-संचय कर रहा था। परंतु उसके माग में चेत्रों का
कलिंग कठिन अवरोध था । अब सिमुक ने एक नई युक्ति
निकाली । उसने सामुद्रिक दस्युता संगठित की । उसके दस्युश्रों
के ाक्रमण दक्षिणु-सागर के पूर्वी छार पर सवत्र होते। उसके
सेनानी दस्यु बावेर और मिस्र आदि के ऋद्ध पोतों पर छापा
मारते, उनकी संपत्ति हस्तगत कर लेते। इस अजेन में आधा
भाग सिमुक का हेता, आधा विजेता द्स्यु-विशेष का ।
इस प्रकार को जलदस्युता से सिमुकने एक दूरके लाभकी
आशा की थी । उसने विचारया यदि इसी प्रकार के प्रबल
User Reviews
No Reviews | Add Yours...