गर्जन | Garjan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“गजेन, निरंतर गजेन ।» (तुमुल नाद्‌, सिंघु का गंभीर गजेन । ' जहाँ आज पुरी की बस्ती है उससे कुछ उत्तर हटकर सिंधु को मोड़ पर एक विशाल तटवर्ती वन था । उस वन के जल- लप्र दक्तिण भाग में विक्रांत जलदस्यु शूलपाणि निवास करता था। आंध्र सिमुक सातवाहन इसी समय मौर्यों की दुबंलता से शक्ति-संचय कर रहा था। परंतु उसके माग में चेत्रों का कलिंग कठिन अवरोध था । अब सिमुक ने एक नई युक्ति निकाली । उसने सामुद्रिक दस्युता संगठित की । उसके दस्युश्रों के ाक्रमण दक्षिणु-सागर के पूर्वी छार पर सवत्र होते। उसके सेनानी दस्यु बावेर और मिस्र आदि के ऋद्ध पोतों पर छापा मारते, उनकी संपत्ति हस्तगत कर लेते। इस अजेन में आधा भाग सिमुक का हेता, आधा विजेता द्स्यु-विशेष का । इस प्रकार को जलदस्युता से सिमुकने एक दूरके लाभकी आशा की थी । उसने विचारया यदि इसी प्रकार के प्रबल




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