कविता संभव | Kavita Sambhav

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Kavita Sambhav by नरपत मीन - Narapat Meen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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|, व्क्ष्ति अपने वीये से लाश का चित्र बनाकर उसके निचे लिखद्‌ यह मैं' हूँ भ्रौर उस कृति को भारपद का वो कोना दूँ जिसकी खिड़किया मेरे परिचितों की गलियो मे खुलती हो ताकी फिर कोर परिचित अपररिचित शब्दों में य न पूछे मैं कौन हूं ? कसा हूँ? चयों हूं ? सारे सवाल 'मर जायेंगे वियें के जहर से !




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